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अहङ्कार

और उसकेसानने उसी भाँति संभोग न करने लगें, जैसे वह अपने जीवन में किया करते थे। कभी-कभी इसे ऐसा मालूम होता था कि चुम्बन का शब्द सुनाई दे रहा है।

वह मानसिक ताप ले जता जाता था, और अब ईश्वर की दयादृष्टि से वंचित होकर उसे विचारों से सना ही भय लगना था जितना भावों से। न जाने मन में कब क्या सब जागृत हो जाय!

एक दिन संध्या समय जब वह अपने नियमानुसार औंधे मुँह पड़ा सिजदा कर रहा था, किसी अपरिचित आखों ने इस से कहा—

पापनाशी, पृथ्वी पर उससे कितने ही अधिक और कितने ही विचित्र प्राणी बसते हैं जितना तुन अनुनान कर सब्ते हो, और यदि नै तुम्हें यह सब दिला न जितना मैने अनुभव किया है तो तुम आश्चर्य से मर जाओगे। संसार ने ऐसे मनुष्य भी हैं जिन ने ललाट के मध्य में केवल एक ही आँख होती है और वह जीवन का सारा ज्ञान इसी एक आँख से करते है। ऐले प्राणी भी देखे गये हैं जिनके एक ही टाँग होती है और वह उछल-उछलकर चलते हैं। इन एकटाँगों से एक पुरा प्रान्त बसा हुआ है। ऐसे प्राणी मी हैं जो इच्छानुसार स्त्री या पुरुष बन जाते हैं। उनमें लिंगभेद ही नहीं होगा। इतना ही सुनकर न चकराओं पृथ्वों पर मानववृक्ष हैं जिनकी बड़े बनीन में फैलती हैं, बिना सिरवाले मनुष्य हैं जिनकी छाती में मुँह लें और एक नाक रहती है। क्या तुन शुद्ध मन से विश्वास करते हो कि प्रभु मसीह ने इन प्राणियों की मुक्ति के निर्मित्त हो शरीर त्याग किया? अगर उसने इन दुखियों को छोड़ दिया है तो यह कितनी शरण जायेंगे, कौन इनकी मुक्ति का दायी होगा?