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अहङ्कार

उस दिन से उसने निश्चय किया कि अब हाथों से श्रम करेगा जिसमे विचारेन्द्रियों को यह शान्ति मिले जिसकी उन्हे बडी अवश्यकता थी। आलस्य का सबसे बुरा फल कुप्रवृत्तियों को उकसाना है।

जलधार के निकट, छुहारे के वृक्षों के नीचे कई केले के पौदे थे जिनकी पत्तियाँ बहुत बड़ी-बड़ी थीं। पापनाशी ने उनके तने काट लिए और उन्हे क़ब्र के पास लाया । इन्हे उसने एक पत्थर से कुचला और उनके रेशे निकाले । रस्सी बनानेवालों को उसने केले के तार निकालते देखा था। वह उस रस्सी की जगह कमर में लपेटने के लिए दूसरी रस्सी बनानी चाहता था जो एक पिशाच चुरा ले गया था। प्रेतों ने उसकी दिनचर्या में यह परिवर्तन देखा तो क्रुद्ध हुए । किन्तु उसी क्षण से उनका शोर बन्द हो गया, और सितारवाली रमणी ने भी अपने अलौकिक संगीतकला को बन्द कर दिया और पूर्ववत् दीवार से जा मिली और चुपचाप खड़ी हो गई।

पापनाशी ज्यों-ज्यों केले के तनों को कुचलता था, उसका आत्मविश्वास, धैर्य और धर्मबल बढ़ता जाता था।

उसने मन में विचार किया—

ईश्वर की इच्छा है तो अब भी इन्द्रियों को दमन कर सकता हूँ । रही आत्मा, उसकी धर्मनिष्ठा अभी तक निश्चल और अभेद्य । ये प्रेत, पिशाच, शण, और वह कुलटा स्त्री, मेरे मन मे ईश्वर के सम्बन्ध में भाँति-भाँति की शंकाएँ उत्पन्न करते रहते हैं। मैं ऋषि जॉन के शब्दों में उनको यह उत्तर दूँगा—

'आदि मे शन था और शब्द भी निराकार ईश्वर था। यह मेरा अटल विश्वास है, और यदि मेरा विश्वास मिथ्या और भ्रममूलक है तो मैं दृढ़ता से उस पर विश्वास करता हूँ । वास्तव