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अहङ्कार

लिए तेरी आत्मा में ईश्वरीय शान्ति का निवास है। तेरी सुकीति का कमल तेरे कुकर्मों के कीचड़ से उदय हुआ है।

उनके सभी भाषणों से देवबुद्धि प्रगट होती थी।

वृद्धजनों से उन्होंने कहा—

ईश्वर के सिंहासन के चारों ओर अस्सी वृद्ध पुरुष उज्वल वस्त्र पहने, सिर पर स्वर्णमुकुट धारण किये बैठे रहते हैं।

युवकवृन्द को उन्होंने इन शब्दों में सान्त्वना दी– 'प्रसन्न रहो, उदासीनता उन लोगों के लिए छोड़ दो जो संसार का सुख भोग रहे हैं !

इस मौत सबसे हँस-हँसकर बातें करते, उपदेश करते हुए वह अपने धर्मपुत्रों की सेना के सामने चले जाते थे। सहसा पापनाशी उन्हें समीप पाते देखकर, उनके चरणों पर गिर पड़ा। उसका हृदय आशा और भय से विदीर्ण हो रहा था।

'मेरे पूज्य पिता, मेरे दयालु पिता !' इसने मानसिक वेदना से पीड़ित होकर कहा—प्रिय पिता, मेरी बाँह पकड़िये क्योंकि मैं भँवर में बहा जाता हूॅ। मैंने थायस की आत्मा को ईश्वर के चरणों पर समर्पित किया, मैंने एक ऊँचे स्तम्भ के शिखर पर और एक कत्र की कन्दरा में तप किया है, भूमि पर रगड़ खाते- खाते मेरे मस्तक में ऊँट के घुटनों के समान घट्ठे पड़ गये हैं, तिस पर भी ईश्वर ने मुझसे आँखें फेर ली है। पिता, मुझे आशीर्वाद दीजिए, इससे उद्धार हो जायगा।

किन्तु ऐन्टोनी ने इसका कुछ उत्तर न दिया। उसने पाप- नाशी के शिष्यों को ऐसी तीव्र दृष्टि से देखा जिसके सामने खड़ा होना मुश्किल था। इतने में उनकी निगाह मूर्ख पॉल पर जा पड़ी । वह ज़रा देर उसकी तरफ देखते रहे, फिर उसे अपने समीप आने का सकेत किया। चूँकि सभी आदमियों को विस्मय