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अहङ्कार

इन सिद्ध-पुरुषों के योगबल के सामने वन-जन्तु मी शीश झुकाते थे। जब कोई योगीमरणासन्न होता तो एक सिंह आकर पंजों से उसकी कब्र खोदता था। इससे योगी को मालूम हो जाता था कि भगवान उसे बुला रहे हैं। वह तुरन्त जाकर अपने सहयोगियों के मुख चूमता था। तब कब्र में आकर समाधिस्थ हो जाता था।

अब तक इस तपाश्रम का प्रधान ऐन्टोनी था। पर अब उस की अवस्था १०० वर्षों की हो चुकी थी। इसलिए वह इस स्थान को त्यागकर अपने दो शिष्यों के साथ जिनके नाम मकर और अमात्य थे, एक पहाड़ी में विश्राम करने चला गया था। अब इस आश्रम में पापनाशी नाम के एक साधू से बड़ा और कोई महात्मा न था उसके सत्कर्मों की कीर्ति दूर-दूर फैली हुई थी। और कई तपस्वी थे जिनके अनुयायियों की संख्या अधिक थी और जो अपने आश्रमों के शासन में अधिक कुशल थे। लेकिन पापनाशी "व्रत और तप में सबसे बढ़ा हुआ था, यहाँ तक कि वह तीन-तीन दिन अनशन जब रखता था, रात को और प्रातःकाल अपने शरीर को बाणों से छेदता था और घण्टों भूमि पर मस्तक नवाये पड़ा रहता था।

उसके २४ शिष्यों ने अपनी-अपनी कुटियाँ उसकी कुटी के "आस पास बना ली थीं और योगक्रयाओं में उसी के अनुगामी थे। इन धर्मपुत्रों में ऐसे-ऐसे मनुष्य थे जिन्होंने वर्षों डकैतियों की थीं, जिनके हाथ रक्त से रँगे हुए थे, पर महात्मा पापनशी के उपदेशों के वशीभूत होकर वह अब धार्मिक जीवन व्यतीत करते थे, और अपने पवित्र आचरणों से अपने सहवर्गियोंको चकित कर देते थे। एक शिष्य, जो पहले हव्श देशकी रानी का बावरची था, नित्य रोता रहता था, एक और शिष्य फलदा नामका था जिसने पूरी बाइबिल कंठ कर ली थी और वाणी में भी निपुण था। लेकिन