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अहङ्कार

जो शिष्य आत्म-शुद्धि मे इन सबसे बढ़कर था वह पाल नामका एक किसान युवक था! उसे लोग मुर्ख पाल कहा करते थे, क्योंकि वह अत्यन्त सरल-हृदय था। लोग उसकी भोली भाली बातों पर इसा करते थे, लेकिन ईश्वर की उस पर विशेष कृपादृष्टि थी। वह आत्मदर्शी और भविष्यवक्ता था। उसे इलहाम हुआ करता था।

पापनाशी का जीवन अपने शिष्यों की शिक्षा दीक्षा और आत्मशुद्धि की कृयाओं में कटता था। वह रात भर बैठा हुआ बाइबिल की कथाओं पर मनन किया करता था कि उनमें दृष्टान्तों को ढूँढ़ निकालो। इसलिए अवस्था के न्यून होने पर भा वह नित्य परोपकार में रत रहता था। पिशाचगण जो अन्य तपस्वियों पर आक्रमण करते थे, उसके निकट जाने का साहस न कर सकते थे। रातको सात शृगाल उसकी कुटी के द्वार पर चुपचाप बैठे रहते थे। लोगों का विचार था कि यह सातों दैत्य थे जो उसके योगवत के कारण चौखट के अन्दर पाँव न रख सकते थे।

पापनाशी का जन्मस्थान इस्कन्द्रिया था। उसके माता पिता ने उसे भौतिक विद्या की ऊँची शिक्षा दिलाई थी। उसने कवियों के शृंगार का आस्वादन किया था और यौवनकाल में ईश्वर के अनादित्व, बल्कि अस्तित्व पर भी, दूसरों से वाद विवाद किया करता था। इसके पश्चात् कुछ दिन तक उसने धनी पुरुपों की अथानुसार ऐन्द्रिय-सुख भोगमे व्यतीत किये, जिसे याद करके अब लना और ग्लानि से उसको अत्यन्त पीड़ा होती थी। वह अपने सहचरोंसे कहा करता, 'उन दिनों मुझपर वासनाका भूत सवार था।' इसका आशय यह कदापि न था कि उसने व्यभिचार किया था; बल्कि केवल इतना कि उसने स्वादिष्ट भोजन किया था और नाट्यशालाओं में तमाशा देखने जाया करता था। वास्तवमे २० वर्षकी अवस्था तक उसने उस कालके साधारण मनुष्योंकी भांति