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अहङ्कार


छोटी-सी प्रार्थना की और फिर थायस का ध्यान करने लगा।

उसने अपने मन में निश्चय किया 'हरीक्षा से मैं अवश्य उसका उद्धार करूँगा'। तब उसने विश्राम किया।

दूसरे दिन उषा के साथ उसकी निद्रा भी खुली। उसने तुरंत ईशवदना की और पालम सन्त से मिलने गया जिनका पाश्रम वहां से कुछ दूर था। उसने सन्त महात्मा को अपने स्वभाव के अनुसार प्रफुल्ल चित्त से भूमि खोदते पाया। पालम बहुत वृद्ध थे। उन्होंने एक छोटी-सी फुलवाड़ी लगा रखी थी। वनजन्तु आकर उनके हाथों को चाटते थे, और पिशाचादि कभी उन्हें कष्ट न देते थे।

उन्होंने पापनाशी को देखकर नमस्कार किया।

पापनाशी ने उत्तर देते हुए कहा-भगवान् तुम्हें शान्ति दे।

पालम-तुम्हें भी भगवान शान्वि दे। यह कह कर उन्होंने माथे का पसीना अपने कुरते की आस्तीन से पीछा।

पापनाशी-बधुवर, जहाँ भगवान की चर्चा होती है यहाँ भगवान अवश्य वर्तमान रहते हैं। हमारा धर्म है कि अपने सम्माषणों में भी ईश्वर की स्तुति ही किया करें। मैं इस समय ईश्वर की कीर्ति प्रसारित करने के लिए एक प्रस्ताव लेकर आपकी सेवा में उपस्थित हुआ हूँ।

पालम-बन्धु पापनाशी, भगवन् तुम्हारे प्रस्ताव को मेरे काहू के बेलों की भांति सफल करे। वह नित्य प्रभात को मेरी वाटिका पर ओस विन्दुओं के साथ अपनी दया की वर्षा करता है, और उसके प्रदान किये हुए खीरों और खरबूजों का आस्वादन करके मैं इसको असीम वात्सल्य की जयजयकार मनाता हूँ। उससे यही याचना करनी चाहिए कि हमे अपनी शांति की छाया में रखे। क्योंकि मन को उद्विग्न करनेवाले भीषण दुरावेगों से