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अहंङ्कार

लेकिन पापनाशी ने केवल इतना कहा—'ईश्वर तू इन अबोध बालकों को सुबुद्धि दे, वह नहीं जानते कि वे क्या करते हैं।'

वह आगे चला तो सोचने लगा—उम वृद्धा स्त्री ने मेरा कितना सम्मान किया और इन लड़कों ने कितना अपमान किया। इस भाँति एक ही वस्तु को भ्रम में पड़े हुये प्राणी भिन्न-भिन्न भावों से देखते हैं। यह स्वीकार करना पड़ेगा कि टिमाक्लीज मिथ्यावादी होते हुये भी बिल्कुल निर्बुद्धि न था। वह अंधा तो इतना जानता था कि मैं प्रकाश से वंचित हूँ। उमका वचन इन दुरा- अहियों से कहीं उत्तम था जो धने अन्धकार में बैठे पुकारते हैं— 'वह सूर्य है!' वह नहीं जानते कि ससार में मघ कुछ माया, सृगतृष्णा, उड़ता हुआ बालू है। केवल ईश्वर ही स्थायी है।

वह नगर में बड़े वेग से पाँव उठाता हुआ चला। दस वर्ष के बाद देखने पर भी उसे वहाँ का एक-एक पत्थर परिचित मालूम होता था, और प्रत्येक पत्थर उसके मन में किसी दुष्कर्म की याद दिलाता था। इसलिए उसने सडकों से जड़े हुए पत्थरों पर अपने पैरों को पटकना शुरू किया और जब पैरों से रक्त बहने लगा तो उसे आनन्द-सा हुआ। सडक के दोनों किनारों पर बड़े- बड़े महल बने हुए थे जो सुगंध की लपटों मे अलसित जान पड़ते थे। देवदार, छुहारे, आदि के वृक्ष सिर उठाये हुए इन भवनों को भानों बालकों की भाँति गोद में खिला रहे थे। अधखुले द्वारों में से पीतल की मूर्तियों संगमरमर के गमलों में रखी हुई दिखाई दे रही थीं और स्वच्छ जल के हौज कुञ्जों की छाया में लहरें मार रहे थे। पूर्ण शान्ति छाई हुई थी। शोर गुल का नाम न था। हाँ, कभी-कभी द्वार से आनेवाली वीणा की ध्वनि कान में आ जाती थी। पापनाशी एक भवन के द्वार पर सका जिसकी सायवान के