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अहङ्कार


दोनों नग्न थी। निसियास ने तब उसके लिए गावकिये और विस्तर मँगाये और नाना प्रकार के भोजन और उत्तम शराब उसके सामने रखी। परं उसने घृणा के साथ सव वस्तुओं को सामने से हटा दिया। तब बोला-

निसियास, मैंने उस ससथ का परित्याग नहीं किया जिसे तुमने गलती से ईसाइयों की दुर्गति' कहा है। वही तो सत्य की आत्मा और ज्ञान का प्राण है। आदि में केवल शब्द था और 'शब्द' के साथ ईश्वर था, और शब्द ही ईश्वर था। उसीने समस्त ब्रह्माण्ड की रचना की। वही जीवन का स्रोत है और जीवन मानवजाति का प्रकाश है।

निसियास ने उत्तर दिया-प्रिय पापनाशी, क्या तुम्हें आशा है कि मैं अर्थहीन शब्दों के मंकार से चकित हो जाऊँगा? क्या तुम भूल गये कि में स्वयं छोटा-मोटा दार्शनिक हूँ? क्या तुम समझते हो कि मेरी शांति उन चिथड़ों से हो जायगी जो कुछ निर्बुद्ध मनुष्यों ने इमलियस के वनों से फाड़ लिया है, जब इमलियस, फलातूं और अन्य तत्वज्ञानियों से मेरी शांति न हुई ऋषियों के निकाले हुए सिद्धान्त केवल कल्पित कथायें है जो मानव सरलहृदयता के मनोरंजन के निमित्त कही गई हैं। उनको पढ़कर हमारा मनोरंजन उसी भाँति होता है जैसे अन्य कथाओं को पढ़ कर। इसके बाद अपने मेहमान काहाथ पकड़ कर वह उसे एक कमरे में ले गया जहाँ हजारों लपेटे हुए भोजपन्न टोकरों में रखे हुए थे। उन्हें दिखाकर बोला-यही मेरा पुस्तकालय है। इसमें उन सिद्धान्तों में से कितनों 'ही का संग्रह है जो ज्ञानियों ने सृष्टि के रहस्य को व्याख्या करने के लिए आविष्कृत किये हैं।*[१] सेरापियम में भी अतुल धन के होते हुए, सर्व सिद्धान्तों का संग्रह नहीं है।

  1. * मिश्र के रहनेवालों के आराध्यदेव का मन्दिर।