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अहङ्कार

पापनाशी बोला-प्रभु मसीह मेरी रक्षा करेंगे। मेरी उन है यह भी प्रार्थना है कि वह तुम्हारे हृदय में भी धर्म की ज्योति प्रका शित करें और तुम उस अधकारमय कूप में से निकल आओ जिसमें पड़े हुए एड़ियां रगड़ रहे हो।

यह कह कर वह गर्ष से मस्तक उठाये बाहर निकला। लेकिन निसियास भी उसक पीछे चला। द्वारपर श्रावे-भाते उसे पा लिया और वष अपना हाथ उसके कंधे पर रखकर उसके कान में बोलादेखो, 'वीनस' को क्रुद्ध मत करना । उसका प्रत्याघात अत्या भीषणहता है।

किन्तु पापनाशी ने इसचेतावनीको तुच्छ समझा, सिर फेरर भी न दखा। वह निसियास' को पतित समझता था, लेकिन जिम बात से उस जलन होती थी वह यह थी कि मेरा पुराना मित्र थायंस का प्रेमपान रह चुका है। उसे ऐसा अनुभव होता था कि इससे घोर अपराध छोहा नहीं सकता। अवसे यह निसियास को स/र का सबसे अधम, सबसे घृणिव प्राणी समझने लगा। उसने अष्टाचार से सदैव नफरत की थी, लेकिन आज के पहले यह पाप उसे इतना नारकीय कभी न प्रतीत हुआ था। उसकी समझ में प्रम मसीह के काध और स्वगदूतों के तिरस्कार का इससे निन्य और कोई विषयहीन था।

उसके मन मे थायस को इन विलासियों से बचाने के लिए अब और भी तोत्र आकांक्षा जागृत हुई। अब बिना एक क्षण विलम्ब किये मुझे थायस से भेंट करनी चाहिए ! लेकिन भयो म कालथा और जब तक दोपहर की गरमीशांत न हो जाये थायस के घर जाना उचित न था। पापनाशी शहर की सड़को रखा आज उसने कुछ भोजनन किया था जिसमें 'THO की क्या-दृष्टि रहे। कमी वह वीनता से भाँखें वामीन की ओर