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अहङ्कार

निरन्तर महाघोर संग्राम होता रहता था। पिशाचों को सदैव यह धुन रहती थी कि भोगियों को किसी तरह धोखे मे डालें और उनसे अपनी आज्ञा मनवा लें। सन्त जॉन एक प्रसिद्ध पुरुष थे। पिशाचों के राजा ने ६० वर्ष तक लगातार उन्हे धोखा देने की चेष्टा की पर सन्त जॉन उसकी चालों को ताड़ लिया करते थे। एक दिन पिशाच-राजा ने एक वैरागी का रूप धारण किया और नॉन की कुटी मे आकर बोला—जॉन, कल शाम तक तुम्हें अन- शन व्रत रखना होगा। जॉन ने समझा यह ईश्वर का दूत है और दो दिन तक निर्जल रहा। पिशाच ने उन पर केवल यही एक विजय प्राप्त की, यद्यपि इससे पिशाचरान का कोई रिसत उद्देश्य न पूरा हुआ, पर सन्त जॉन को अपनी पराजय का बहुत शोक हुआ। किन्तु पापनाशी ने जो स्वप्न देखा था उसका विषय ही कहे देता था कि इसका का पिशाच है।

वह ईश्वर से दीन शब्दों में कह रहा था—मुझमे ऐसा कौन-सा अपराध हुआ जिसके दण्डस्वरूप तूने मुझे पिशाच के फन्दे मे डाल दिया। सहसा उसे मालूम हुआ कि मैं मनुष्यों के एक बड़े समूह में इधर-उधर धक्के खा रहा हूँ। कभी इधर जा पड़ता हूँ, कभी उधर। उसे नगरों की भीड-भाड़ मे चलने का अभ्यास न था। वह एक जड़ वस्तु की भाँति इधर-उधर ठोकरें खाता फिरता था, और अपने कमख्वाब के कुरते के दामन से उलझकर वह कई बार गिरते-गिरते बचा। अत में उसने एक मनुष्य से पूछा—तुम लोग सब के सब एक ही दिशा में इतनी हड़बड़ी के माथ कहाँ दौड़े जा रहे हो? क्या किसी संत का उपदेश हो रहा है?

उस मनुष्य ने उत्तर दिया—यात्री, तुम्हें क्या मालूम नहीं कि शीघ्र ही तमाशा-शुरू होगा और थायस रग-मच पर उपस्थित होगी। हम सब उसी थियेटर में जा रहे हैं। तुम्हारी इच्छा हो तो