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अहङ्कार

तब छोलदारियों मेंसे एक के सामने का परदा उठा और कुमारी पालिक्सेना प्रगट हुई। दर्शकों में एक सनसनी-सी दौड़ गई। उन्होंने थायस को पहचान लिया। पापनाशी ने उस वेश्या को फिर देखा जिसकी खोज में यह आया था। वह अपने गोरे हाथ से भारी परदे को ऊपर उठाये हुए थी। वह एक विशाल प्रतिमा की भाँति स्थिर खड़ी थी। उसके अपूर्व लोचनों से गर्व और आत्मोत्सर्ग झलक रहा था, और उसके प्रदीप्त सौन्दर्य से समस्त दर्शकवृन्द एक निरुपाय लालसा के आवेग से थर्रा उठे।

पापनाशी का चित्त व्यग्र हो उठा। छाती को दोनों हाथों से दबाकर उसने एक ठण्डी साँस लिया और बोला—ईश्वर! तूने एक प्राणी को क्यों कर इतनी शक्ति प्रदान की है?

किन्तु डोरियन जरा भी अशान्त न हुआ। बोला—वास्तव में जिन परमाणुओं के एकत्र हो जाने से इस स्त्री को रचना है उनका संयोग बहुत ही नयनाभिराम है। लेकिन यह केवल प्रकृति की एक क्रीड़ा है, और परमाणु, जड़वस्तु हैं। किसी दिन वह स्वाभाविक रीति से विच्छिन्न हो जायेंगे। जिन परमाणुओं से लैला और क्लीओपेटरा की रचना हुई थी वह अब कहाँ है? मैं मानता हूँ कि स्त्रियाँ कमी-कभी बहुत रूपवती होती है, लेकिन वह भी तो विपत्ति और घृणोत्पादक अवस्थाओं के वशीभूत हो जाती हैं। बुद्धिमानों को यह बात मालूम है, यद्यपि मूर्ख लोग इसपर ध्यान नहीं देते।

योगी ने भी थायस को देखा। दार्शनिक ने भी। दोनों के मन मे भिन्न-भिन्त विचार उत्पन्न हुए। एक ने ईश्वर से फ़रियाद की, दूसरे ने उदासीनता से तत्व का निरूपण किया।

इतने में रानी हेक्युबा ने अपनी कन्या को इशारों से सम- झाया, मानों कह रही है इस हृदयहीन उलाइसेस पर अपना