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अहङ्कार

मन्दबुद्धि न था। उसके स्वभाव में विनय और सौहार्द्र को आमा झलकती थी, किन्तु उसका मधुर हास्य और मृदुकल्पनाएँ उसे रिझाने में सफल न होती। उसे निसियास से प्रेम न था, कभी- कभी उसकी सुभापितों से उसे चिढ़ होती थी। उसके शंकापाद् से उसका चित्त व्यग्र हो जाता था, क्योंकि निसिवास की श्रद्धा किसी पर न थी और थायस की श्रद्धा सभी पर थी। उसे ईश्वर पर, भूत-प्रेतों पर, जादू-टोने पर, जन्त्र-मन्त्र पर, पूरा विश्वास था। वह ईश्वर के अनन्त न्याय पर विश्वास करती थी। उसकी भक्ति प्रभु मसीह पर भी थी, शामवालों की पुनीता देवी पर भी उसे विश्वास था कि रात को जब अमुक प्रेत गलियों में निकलता है तो कुत्तियाँ भूँकती हैं। भारन, उच्चाटन, वशीकरण के विधानों पर और शक्ति पर उसे अटल विश्वास था। उसका चित्त अज्ञात के लिए उत्सुक रहता था। वह देवताओं की मनौतियाँ करती थी, और सदैव शुभाशाओं में मन रहती थी। भविष्य से वह सशंक रहती थी, फिर भी उसे जानना चाहती थी। उसके यहाँ ओझे, सचाने, तांत्रिक, मंत्र जगाने वाले, हाथ देखने वाले जमा रहते थे। वह उनके हाथों नित्य धोखा खात्री पर सतर्क न होनी थी। वह मौत से डरती थी और उससे सशंक रहती थी। सुख- भोग के समय भी उसे भय होता था कि कोई निर्दय कठोर हाथ उसका गला दबाने के लिए बढ़ा आता है और वह चिल्ला उठती थी।

निसियास कहता था—प्रिये, एक बात है चाहे हम रुग्ण और जर्जर होकर महारात्रि की गोद मे समा जाय, अथवा यहीं बैठे, आनन्द भोग करते, हँसते खेलते,संसार से प्रस्थान कर जायँ। जीवन का उद्देश्य सुखभोग है। आओ जीवन की बहार लूटे; प्रेम से हमारा जीवन सफल हो जायगा। इन्द्रियों द्वारा प्राप्त