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अहङ्कार

अनुरक, करुण स्वर्ग-ध्वनि थी, जो मर्मस्थल में चुटकियाँ लेती हुई जान पड़ती थी। थायस अंत:करण के वशीभूत होकर इस तरह द्वार खोलकर भीतर घुस गई मानों किसी ने उसे बुलाया है। वहाँ उसे पाल, वृद्ध, नर-नारियों का एक बड़ा समूह एक समाधि के सामने सिजदा करता हुआ दिखाई दिया। यह कब्र केवल पत्थर की एक ताबूत थी, जिस पर अंगूर के गुच्छों और बेनों के आकार बने हुए थे। पर उस पर लोगों की असीम श्रद्धा थी। वह खजूर की टहनियों और गुलाब के पुष्पमालाओं से ढकी हुई थी। चारों तरफ दीपक अल रहे थे और उसके मलिन प्रकाश में लोवान, ऊद आदि का धुआँ स्वर्ग-दूतों के वस्त्रों की तहों से दीखते थे, और दीवार के चित्र स्वर्ग के दृश्यों के-से। कई श्वेत वस्त्रधारी पादरी कन के पैरों पर पेट के बल पड़े हुए थे। उनके भजन दुःख के आनन्द को प्रगट करते थे, और अपने शोकोल्लास में दुःख और सुख, हर्ष और शोक का ऐसा समावेश कर रहे थे कि थायस को उनके सुनने से जीवन के सुख और मृत्यु के भय, एक साथ ही किसी जल स्रोत की भाँति अपनी सचिन्त स्नायुओं में वहते हुए जान पड़े।

जब गाना बन्द हुश्रा वो भक्त-जन उठे और एक क़तार में कान के पास जाकर उसे चूमा। यह सामान्य प्राणी थे जो मजूरी करके निर्वाह करते थे। क्या धीरे धीरे पग उठाते, आँखों में औसू भरे, सिर झुकाये, वे आगे बढते, और बारी-बारी से वन की परिक्रमा करते थे। वियों ने अपने बालकों को गोद में उठाकर अत्र पर उनके ओठ रख दिये।

थायस ने विस्मित और चिन्तित होकर एक पादरी से पूछा— पूज्य पिता, यह कैसा समारोह है?

पादरी ने उत्तर दिया—क्या तुम्हें नहीं मालूम कि हम आज