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गांधीजी

सम्मिलित रुपसे कष्ड-सहुनक लायक छोटे और अनुशासनयुफ्त राष्ट्रके लिये सम्भव हो सकतो है। मुझे ऐसा विश्वास रखनेका कोई हक नहीं है कि हिलुस्तानके अलावा और कोई राष्|ू अहिसात्मक कार्यके लिये उपयुक्त नहीं है। अब भे जरूर कबूल करूंगा कि मेरा यहु विदवास रहा

हैँऔर अब भी हैकि अहितात्मक उपाय द्वार अपनी स्वतंत्रता फिरसे प्राप्त कशनेके लिये हिन्द स्ताव ही सबसे उपयुक्त राष्ट्र है। इससे विपरीत आसारोंकेबावजूद, मुझे इस बातकी उम्मीव है कि हमारा जनसमुदाय, जो कॉग्रेससे भी बड़ा है, फ्रेवचल अधहिसात्मक कार्य ही अपनायेगा।

फ्योकि भूमण्डलके समस्त राष्ट्रोंमेहमी ऐसे कासके किये सबसे अधिक तैयार हैं ॥ लेकिन जब इस उपायके तत्काल अगलका मामला हमार सासंने आया, तो चेकोंको उसे स्वीकार

करनेके लिये कहे बगेर से न रह सका । भगर बड़े-बड़े राष्ट्र चाहें, तो चाहे जिस फिसी दिम इसको अपनाकर गौरव ही नहीं"

बह्कि भावी पीढ़ियोंकीशाइवत कृतज्ञता भी प्राप्त कर सकते है"। अगर थे था उससेंसे कुछ विनाशके भयकों छोड़कर निःदास्‍्त्र हो जायें तो ब्राकी सब फिरसे अक्लमंद बननेसें अपने आप

सहायक होंगे। लेकिन उस हालतमें इन बड़े-बड़े राष्ट्रोंकोसाधाज्यवादी भहात्वाकाक्षों तथा भूमण्डलके असभ्य तथा अद्धं-राम्य कहे जानेवाले राष्ट्रोंके शोषणको छोड़कर अपगे भ्ीवन-क्रमकों

सुधारता पड़ेगा । इसका अर्थ हुआ पुर्ण-क्रॉति । पर बड़े-बड़े राष्ट्र साधारण झृपमें विजवपर विजय

प्राप्त करतेकी अपनी धारणाओंकीछोड़कर जिस रास्तेपर चल रहेहै", उससे विपरीत रास्तेपर वे एकदस नहीं चर सकते। लेफिन चमत्कार पहुले भी हुए है" और इस बिलकुछ भीरस जमानेमेंभीहो सकते है'। भधरतीको सुधारनेकी ई:बरकी शक्तिकों भला कौन सीमित कर सकता है । एक बात निश्चचत है। शस्त्रास्त्र बढ़ानेकी यह उन्मत दौड़ अगर जारी रही, तो उसके फलस्वरूप ऐसा जन-संहार होना लाजिमी हैजैसा इतिहासभे' पहले कभी नहीं [ुआ ।

फोई विजयी बाकी रहा तो जो राष्ट्र विजयी होगा उसकी विजय ही उसके जीते-जी मृत्यु बन जायगी इस निदव्चिचत विनाशसे बचनेका इसके सिर फोई रास्ता नहीं हैकि अहिसात्मक उपायको, उसफे समस्त फलितार्थोकों साहसपूर्वेक स्वीकार कर लिया जाय। प्रजातंत्र और हिंसाका सेल नहीं" बैठ सकता। जो राज्य नभाभक लिये आज प्रजातंन्री है" उन्हें या तो स्पष्ठ रुपसे तानाशाहीका

हामी हो जाना चाहिये, या अगर उन्हें सचभुच भजातंत्री बनना हूँतो, उन्हें साहुसके साथ भहिसक धन जामा चाहिये । यह कहुना बिलकुल वाहियात हैँकि अहिसाका पाकृण केवल व्यक्ति ही

कर सकते हूँ,राष्ट्र हुगिम नहीं, जो व्यक्तियोंसेबनेहै । हुरिजन सेवक १२ सवस्थर, १९४९४

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