पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/१४

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शात्म-रक्षा केसे करें ? पंजाबफ एक फालेजकी लड़कोका एक अत्यंत हृदयस्पर्शी पत्र करीबन दो सहीनेसे मेरी

फाइलमें पड़ा हुआ है।इस लड़कीके प्रश्नका जवाब जो अभीतक नहीं विया इसमें! समयके अभावका तो एक बहाना था। किसी न किसी तरहु इस कामसे अपनेको मेंबचा रहा था,हालाँकि में जानता था कि इस प्रइनका फ्या जवाब देना चाहिये।

मिला।

इस बीचमे' मुझे एक और पत्र

यह पत्र एक ऐसी बहुनका लिखा हुआ है, जो बहुत अनुभव रखती है। मुझे ऐसा

भहसूस हुआ कि फालेजकी इस लड़कीफो जो यह बहुत वास्तविक कठिनाई है,उसका मुकाबला

करना मेरा कत्तंव्य है, और इसकी अब भें" और अधिक दिनोंतक उपेक्षा नहीं कर सकता। पत्र उसने शुद्ध हिन्दुस्तानीमें' लिखा है, जिसका एक भाग में नीचे उद्धृत कर रहा हूँ“लड़फियों' और वयस्क स्त्रियोंकेसामने उनकी इच्छाके विदद्ध, ऐसे अवसर आ जाया गरते है,जब' उन्हे अकेली जानेकी हिम्मत करनी पड़ती है-या तो उन्हें एक ही शहरमें" एुंक जगहरेी दूसरी जगह जाना होता हैथा एक दाहुरसे दूसरे शहुदकों । और जब वे इस तरह

शकेली होती है, तब गंदी मनोवृत्तिवाले छोग उन्हें तंग किया करते है'। वे उस वक्‍त अनुचित्त और अश्छीक भाषा तकका प्रयोग करते है/। अगर भय उन्हें रोकता नदी हैतो श्ससे भी आगे बढ़नेंगे' उन्हें कोई हिंचकिचाहूट नहीं होती । में"यह जानता चाहती हूँकि अहिसा ऐसे मौकोंपर बया काग दे सकती है। हिंसाका उपयोग तो हैही। अगर किसी ऊड़की या स्थरीमें” काफी हिम्मत हो, तो उसके पास जो भी साधन होंगे उन्हें! वह काममे छायेगी और बदमाशोंको एक बार सबया सिखा देगी। वे कमसे कमर हंगामा तो मचा सकती है, जिससे कि छोगोंका ध्यान आक्पित हो जाय,और गुंडेबहांसे भाग जायें। लेकिन मैं यह जानती हूँकि इसके परिणाभस्वरूप विपत्ति' सि्फें ठठ जायगी,यह कोई स्थायी इल्ुज नहीं है। अधिष्ट व्यवहार करनेवाले

लोगोंकाअगर पता हूँतो मुझे विष्यास हैकि उन्हें अगर समंक्षाया जाय ,पो वे आपकी प्रेम और नम्रताकी बाते गुनेंगे। पर उस आदमीके लिए आप वंया कहेंगे, जो.साइकिलपर चढ़ा हुआ किसी लड़की था स्त्रीको देखकर, जिएकेसाथ कोई भर्व साथी नहीं है,गंदी भाषाका प्रयोग करता

है ? उसको दल्लीक देकर समझानेका आपको मौका नही । आपकी उससे फिरसे मिलनेकी कोई सम्श।वना नहीं । हो सकता हैकि भाप उसे पहचाने भी सही । आप उसका पता भी नहीं” जानते। ऐसी परिस्थितियोंमेंवह बेचारी लड़की या स्त्री क्या करें?

मैं अपना ही पषायहरण

देकर आपको अपना अनुभव बताती हूँ। २६ अक्तूबरकी रातकी बात है। में अपनी पुक सहेलीके

शाथ ७-३० बजेके करीब एक खास कामसे जा रही थी। उस वक्‍त किसी सदें साथीकों के जाना सामूसकिंग था, और काम इतता जक्ूरी था कि दाला नहीं जा सवाता था।

एक सिविल युवक साइकिकूपर जा रहा था।

राष्तेमें

यह कुछ गुन-पुनाता जाता था। अबतक

हम सुत्त सके, उसने गुतगुनाभा जारी रखा। हें यहू माछूम था कि यह हमें छक्ष करके ही गुनगुना रहा है। हमें" उसकी यह हरकत बहुत तागवार सादूम हुई। पद्कपर कोई वृहल-पहुकत

' बुरे