पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/१५

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गांवीजी नहीं थी। हमारे चन्द कदम जानेके बाद वह लौट पड़ा । हम उसे फोरन पहचान गये, हालाँकि वह अब भी हमसे खासे फासलेपर था। उसने हमारी तरफ सा दुकिल घुमायी । ईश्वर जाने, उसका इरादा उतरनेका था, या सिर्फ यू हीहमारे पाससे गुजरनेका। हमें ऐस। छगा कि हम खतरेमे” है'। हमें अपनी शारीरिक बह़ादुरीमे” विश्वास नहीं था। में एक औसत लड़कीके

मुकाबछे शरीरसे कमजोर हूँ। लेकिन मेरे हाथमें एक बढ़ी-सी किताब थी। यकायक किसी तरह मेरे अन्दर हिम्मत आ गयी। साइकिलकी तरफ मैने उस फिताबकों जो रसेगारा और चिल्छा कर कहा चुहलवाजी करनेकी तू फिर हिम्मत करेगा ?” वह मुद्दकिलसे अपलेको राभाल सका,

ओर साइकिलकी रफ्तार बढ़ा वहांशे रफूचक्कर हो गया। अब अगर गेते उसकी साइमिककी तरफ किताब जोरगे न गारी होती वो वह अन्ततक इसप्ती तरह अपनी गंदी भाषाशे हमें तंग करता जाता। यह वो एक गामूली, बल्कि नगण्य-सी घटगा है, पर में चाहती हूँकि आप छाहौर

आते और हम हृतभागिती लड़कियोंकादास्तान खुद अपने कात्तों सुनते। आप नि३रचय ही' इस' समस्याका ठीक-ठीक हल दूढ सकते है । राबसे पहले आप गुझे यह बताये कि ऊपर जिक्त परिस्थितियोंकावर्णन मैंतेकिया हैउनगे छड़कियाँ अहिसाके सिद्धान्तका प्रयोग किस' तरह

कर सकती है । और कैसे अपने आपको बचा राकती है । दूसरे रिनयोंकों अगगानित करनेफी मेंयह बहुत बुरी आदत पड़ गयी हैउनको सुधारनेका वया उपाय है ? आप यह जिन भुवकों उपाय न सुझाइये गा कि हमे उस नयी पीढ़ीकेआानेतक इंतजार करना चाहिसे और तबतक हम रा अपमानको चुपत्ताप बर्दादत करते रहे ,जिस पीढ़ीने बचपतसे ही स्त्रियोंकेसाथ भद्गोसित व्यव-

हार करनेकी शिक्षा पायी होगी ।सरकारकी या तो इस सामाजिक बुराईका मुकाबला करनेकी इच्छा नहीं या ऐसा करनेसें वह असमर्थ

प्रश्नके छिये वक्‍त नहीं।

है। और हमारे बड़े-बड़े नेताजीके पास ऐसे

कुछ जब सुनते है” कि किसी लड़कीने अश्विष्टतारों पेश आनेवाफे

नवधुवककी अच्छी तरहसे मरम्मत कर दी है,तो कहते है” 'शायाश, ऐसा ही सब छड़कियोंको करना चाहिये ।/ कभी-कभी किसी नेताकों हग विद्याथियोंकेऐसे दुर्वावहारके खिलाफ छठ-

दार भाषण करते हुए पाते है'। मगर ऐसा कोई वजर चही आता, जो इस गम्भीर सगस्याका हुए निकाऊनेके लिये निरंतर प्रयत्तश्वील हो। आपको यह जावकर कष्ट और आइचर्य होगा कि दीवाली और ऐसे ही दूसरे त्यौहारोंपर इस किस्मकी चेतावनीकी नोटिस निकला करती है" कि रोशनी देखनेकेछिये औरतोंकोघरोंसेबाहुर नहीं निवालना चाहिये ! इसी एक बातसे

आप जान राकते है कि दुनियाके इस हिस्सेमे हम किस कदर मुसीबतोंमेफेंसी हुई है"। ऐशीऐसी नोटिसोंकोजो छिखते है”न तो वे ही कुछ शर्म खाते है ,ओर न पढ़नेवाले ही कि ऐसी भेतावनियाँ क्या उन्हें निकालनी चाहिये ?

एक हसरी पंजाबी लड़कीकी यह पत्र मैंने पढ़नेगे लिये दिया था। उसने भी अपने कालेजजीवनके निजी अनुभवके आधारपर इस घदनाका समर्थत किया। उसने मुझे बसाया कि गेरे संचाददाताने जो कुछ लिखा है, बहुत-सी लककियोंकाअनुभव बैसा हीं होता है।

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एक और अनुभवी महिलाते लखनऊकी अपनो विद्याधिनी मित्रोंकेअनुभव छिश्षे हैं"।

छिलेसा, सियेदरोंमें,उनकी पिछली लाइनमें' बैठे हुए लड़के उन्हें! दिक करते है' और उसके

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