पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/१७

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शोबोजी विचार और जीवनको तरीकेसें यह क्रांति उत्पन्न कर देता हुँ। यदि भेरी पत्र-लेखिका और उस तरहका विचार रखनेवाली लड़कियाँ ऊपर

बताये गये तरीकेसे अपने जीपगफी

बिलकुल ही बदल डाले, तो उन्हें जल्दी ही यह अनुभव होने लगेगा कि उतके सम्पर्कंसे आनेवाले तवजवान उत्तका आदर करना तथा उनकी उपस्थितिसें भप्नोचित व्यकहार करना सीखने ऊंगे है'। लेकिन यदि उन्हें भालृम होने छंगे कि उसकी राज और धर्मपर हमला होनेका खतरा है, तो उनसे उस पशु-भनृष्यकें आगे जआत्मसभर्गणके बजाय मर जानेतकका साहस होना चाहिये। कहा जाता है कि कभी-फरभी लड़कौकों इस तरह बाँधकर या मुहमे कपड़ा दूसकर विवश कर दिया जाता है कि बहु आसादीसे सर भी नहीं सकती, जैसी कि मैंने सलाह दी है। लेकिन मेंफिर भी जोरोंके साथ यह कहुता हूँ कि जिस लड़कोर्मी मुफावबलेका बृढ़ संकल्प है, पह उसे असहाय बतानेके लिंगे

बाँघे गये सब बत्धनोंकोतोड़ सकती है। पुढ़ संकल्प उसे मरनेकी दावित वे सकता है। लेकिन यह साहस और यह दिलेरी उन्हींके लिये संभव है, जिन्होंने इसका क्षभ्यास फर लिया है। जिसका - अहिसापर बुड़ विदवास नहीं है, उन्हें! रक्षाकों साधारण तरीके सीख़फर फायर थुवकोंकेअक्छील वध्यथहारसे अपनेको घचाना चाहिये। पर बड़ा सवाल तो यह हैकि युघक साधारण शिष्ठाचार भी व्यों' छोड़ दें, जिनसे

भली लड़कियोंकोंहमेशा उनसे धतायें जानेका डर लगता रहे? सुझें यह जानफर बुःख होता है कि ज्यादातर मौजवानोंमें बहादुरीका जरा भी मादा नहीं रहा। केकिन

उनमें एक वर्गके लाते मामबर होनेकी डाह पैदा होती चाहिये। उन्हें अपने साथियोंमें होनेवाली प्रत्येक ऐसी वारबातकी जाँच करमी चाहिये । उन्हे हरएक

और बहनकी तरह आदर

स्थीकों अपनी भां

करना चाहिये। यदि थे पिष्टाचार नहीं सीखते, तो उनकी

भाकी सारी लिखायी-पढ़ामी फिजूल है।

गर क्या यहु प्रोफेसरों' और स्कूल-सास्टरोंक्रा फर्ण सही हूँकि वे लोगोंके सामने

जैसे विद्याथियोंकी पढ़ाईके लिये जिम्मेबार होते है" उसी तरह उनके शिष्दाचार ओर सदाधारक हिये भी उसको पुरी तसलल्‍्ली हें ? हरिजन सेवक ११ दिसम्बर,

१९३८

के पे