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प्रेम-एक सार्वजनिक नीति एक भारतीय ईसाई लिखते हैं "यहूदियों वाले आपके लेखपर तरह-तरहकी काफी आलोचना हुई है। मैं बस एकातक रहना चाहता हूँ। वह यह कि ईसाने जिस प्रेमकी शिक्षा दी वह व्यक्तिगत गुण है, समाज या समूहकी नीसि वह नहीं है । "ईसाके जीवनकी शिक्षा सबके लिए है। एकत्रित भावमें यह उससे कग लागू नहीं है जितनी व्यक्तिगत तौरपर । इससे इनकार करना ईसाई धर्मकी मूल सचाईको ही इनकार कर नैना है। ईसा प्रकाशकी भौति दुनियाका भार कम करने के लिए आये। वह पैगम्बरों की परम्परा और जगत-नियमको पूरा करने आये। वह मसीहा थे जिनकी कबसे प्रतीक्षा थी। अनुयायियों ने मनुष्य जातिका त्राता कहकर उन्हें अपनाया। वह तबकी व्यवस्थासे एकदम असंतुष्ट थे। उस समयके यहूवी पुरोहितों और पंडितों के दंग और धर्मउसे उनको इतनी तकलीफ हई थी कि उन्हें इंसाने 'जहरीली औलाद' और 'सफेद तावत' कहा। उन्होने घुसखोरीका ओर दूसरी खराबियों का खुला विरोध किया। मंदिरके आँगनमें पैसा सामने लेकर बैठनेवाले तबके यहूदी पंडों की चौकियों को उलट-पलट दिया। उनको उपटा कि तुम लोगों ने ईश्वर के मंदिरको चोरों का घर बना लिया है। जात-बेजातके साथ खाकर और वेश्याओं को तसल्लीफी बासे कहकर उन्हों ने छूआछूतके पापको लानत भेजी। "उन्हों ने जरूर कहा कि जो राज्यका है वह राजाको दो। पर जो ईश्वरवा है उरो ईश्वर के प्रति उन्होंने समर्पित होने दिया। राज्यके भागको राजाको दे देनेका मत्तलब ही यह है कि राज्य कुछ हड़पे नहीं। अगर राजा ऐसा करे तो इसमें उसे सहयोग नहीं दिया जा सकता। उनके उपदेशों ने लोगों में आवेश भर दिया। क्योंकि वह उपदेश क्रांतिकारी था और सार्वजनिक था। नहीं तो अधिकारियों को क्यों चिन्ता होती कि उस पुरुषको गिरफ्तार करके मौतकी सजा दे जिसमें फैसला देनेवाला जज तक भी 'पापकी कोई रेख'न देख सका। असल में अधिकारियों ने ईसामसीहकी शिक्षामें उस शक्तिफा बीज देखा जिसका आचरण हो तो वह उनकी समाज के सारे वही को ढा दे। जब प्रभुने यरूशलमपर आँसू गिराये तो यह रोना व्यक्तियों के ऊपर न था; वह तो औसू उस समूची व्यवस्थापर बहाये गये थे जी यहूदीसमाजको सत्यानाशकी ओर धकेल रही थी। उन्होंने कहा तो एक के लिए नहीं तमामको सम्धीधनके लिये साधिकार कहा था कि मार्ग वह है,सत्य यह है जीवन वह है। और एक और अकाली ही राह है जो सच्चे लक्यतक पहुँचेगी,और वह प्रेमकी राह है। जो एक गालपर तुम्हें मारे उसके सामने तुम दूसरी गालं भी कर वो; जो सुमसे द्वेष करे, उससे तुम प्रेम करो; दूसरेकी आँखका तिल बताने से पहले अपनी आँखका पहाड़ खो दुखमें सुख मानो; जो कष्ट देते हैं, उनके लिए