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अहिंसा प्रार्थना करो ; अपराधीको हजारपर हजार बार क्षमा करो; हीनकी सेवा करो; और सब छोड़कर ईसाका अनुसरण करो। ये मूल तत्त्व है उस शिक्षाके जो सार्वजनिक है। इसी के लिये ईसा जिये और ईसा मरे। शिष्यों को उन्होंने अपने जीवन और उदाहरण द्वारा जगतको इस शिक्षाका प्रकाश देनेको कहा। उन शिष्यों ने भी स्वयं एक नये समाजके निर्माणकी प्रेरणा अपनेमें अनुभव की। ईसाई धर्मका आरंभिक चर्च इसका उजागर प्रमाण है। उसको अपने शहादत के पवित्र खूनसे सोचकर उन्हों ने खड़ा किया। उसे 'ईसामसीहकी काया' कहा जाता है। नये टेस्टामेंटका एक सबसे सुन्दर भाग है कोरिथियनवाला १३ वा अध्याय। संत पाल द्वारा वह उस समय लिखा गया जब कौरिंथका चर्च आपसी झगड़ों से छिन्न-भिन्न हो रहा था। रांतकी उस वाणीमें जो प्रेमका संदेश है वह सामूहिक कर्मका आदेश ही तो है । 'युद्ध-प्रगुड मर्च यह शब्द जो चला वह अवश्य उस ईसाई-संघका प्रतीक है जिसने मुराईकी ताकतोंका मुकाबिला माना, भौर विरोध के लिए प्रेमका अस्त्र हाथ में लिया जो सबको जीत लेता है। "सहज हो सकता है कि हम आन्तरिक साहस और अखाको कमीकै कारण ईसाको शिक्षाको गवित गत आचरणका नियम बताकर अलग कर हैं। लेकिन वह खतरनाक होगा। यही तो है जिसने ईसाई धर्म माने जानेवाले राष्ट्रों को आजकी-सी खेदजनक हालत तक ला दिया है। "बेधाक अहिंसामा फल हमेशा हमारी इन आँखों के सामने देखने लायक नहीं होता। शहीद अपनी शहादतका फल अपने जीवन में सदा नहीं देख पाते। पर नि:स्वार्थ प्रेम फल गाँगता ही कब है ? वह तो लोक-कल्याणको देखता है, जो उसका अंतरंग है। समाजको एक ऊँचे तलतक उठानेकी उसमें प्रेरणा है, और मानव-प्रकृतिमै अपरिमित विश्वास। प्रेमी राह चलना आसान नहीं है, यह तो ठीक ही है। और अगाध प्रेम के सिवा अहिंसा और दूसरी वस्तु क्या है? लेकिन प्रेगको समाण-नीतिरो माइर और अलग कर बालमा तो ईसाके धर्मको इनकार कर देना ही नहीं है, बल्कि संसारके सब बड़े धोका ही निषेधकर देना है। "राष्ट्रीय या अन्तर्राष्ट्रीय पैमानेपर अहिंसाको अभी काफी नहीं परखा गया है। पर जहाँ गाँधीजी द्वारा उसका प्रयोग हुआ है, उसको सफलता ही मिली है। 'लाठी और भै'स' थाली नीति के ताये होकर षया योरप ईसामसीहकी शिक्षाको खुल्लमखुल्ला झुठला ही नहीं रहा है। यह सवाल है,जो तमाम ईसाई देशों के सामने है। सबसे अधिक स्वतन्त्रताका सबूत क्या • इसमें है कि ताकतका मुकाबला वैसी ही पाशवी ताकतके हथियारों से किया जाय? या कि यह भी हो सकता है कि आदर्श और स्थायी स्वतन्त्र राष्ट्र अथवा राष्ट्रों द्वारा स्वेच्छापूर्वक बहाये गये उनके खून से ही उत्पन्न होगी। "ओह कास, जिससे कि मेरा सिर सीधा रहता है, मैं तुमसे भागना न चाहूँ। धूलमें मिला हूँ, जीवन-बीप बुश रहा है पर परतीसे बिल जमा, प्रभाकी भांति যীশন,লিঙ্গন্ধা খনন খুশি।”