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गांधीजी इस पत्रसे ईसागवार शंका करनेवालोंका समाधान हो जाना चाहिये कि ईसाने जिस प्रेमका उपदेश दिया और आचरण किया वह केवल व्यक्तिगत पदार्थ नहीं है, बल्कि साजिमी तौरपर वह एक सामाजिक और सामूहिक नीति है। और सुखचे ईसासे ६.. वर्ष पहले उसीका उपदेश दिया था और बार लिया था। हरिजन सेवक २८ जनवरी, १९३९ हिंसा बनाम अहिंसा हिन्दुस्तान आण जगह-जगह हिंसा और अहिंसाको पद्धतिक बीच एक द्वन्द्व युद्ध मल रहा है। पानीको निकलनेका रास्ता मिलते ही उसमें से उसका प्रयाह भयानक जोरसे बहने लगता है। अहिंसा पागलपनेसे फामकर ही नहीं सकती। वह तो अनुशासनका सारतस्य है। किन्तु जब वह सक्रिय बन जाती है, तब हिंसाको कोई भी शक्तियाँ असे जेर नहीं सकती। हिसा सोलहों कलाओं से वहीं उदित होती है, जहां उसके नेताओं में कुंधनकी जैसी शुद्धता और अटूट श्रद्धा होती है। इसलिये हुन्छ, यदि अहिंसा हारती हुई दिखायी ये तो ऐसा नेताओं की श्रद्धा कम होनेसे या उनकी शुद्धता कमी भा जानेले अथवा दोनों ही कारणोंसे होगा। यह होते हुये भी अन्समें हिंसापर अहिंसाकी हो विजय होगी, यह माननेका कारण मालूम होता है। जो घटनाएं घट रही हैं, उनका रख ऐसा है कि हिंसाको ध्ययंता कार्यकता खुद ही समझ जायेंगे। पर एक प्रसिद्ध कार्यकत्ताने लिखा है "सत्याग्रहका मुकाबला करनेका रियासतों का तरीका ब्रिटिश सत्ताके तरीकेसे भिन्न मालूम होता है। कुछ रियासतों में जो तरीके अख्त्यार किये गये है वे बहुत ही अमानुषिया और बर्बर है। ऐसी पशुताके आगे अहिंसा क्या सफल होगी। स्त्रियों की इज्जत-आबरूकी रक्षा करनेनी भी वहाँ इजाजत नहीं। साधारण कानून भी ऐसी रक्षाका अधिकार देता है, तो फिर बबर और अमानुषिक तन्त्रका सामना करनेमें इस हनाको नयों न अमलमें लाया जाय ? न मुद्दोंपर क्या माप प्रकाश डाले गे? ___ "उड़ीसा के पोलिटिकल एजेण्टकी हत्याके सम्बन्धमे जो विचार आपने प्रगट पिये है उन्हें मैंने कई बार पढ़ा है। अफसोसकी बात है कि उड़ीसा के देशी राज्यों की प्रजापर मो अत्याचार हुए हैं उनका आपने नल्लेख नहीं किया। एजेंटकी यह हत्या,ममा वेशी राज्यों के अधिकारियो भो