पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

अहिंसा - रहमदिल बनाने के लिए एक दैवी चेतावनी नहीं है। कुल मिलाकर देखा जाय, तो देशी राज्यों की प्रजा और पोलिटिकल निभाग, का दोनों में हमारी सहानुभूतिका कोन अधिक पात्र है! अगर भीउने पोलिटिकल एजेटके विपद्ध हिमारो काम लेनेमें गलती की वो क्या पोलिटिकल एजेंटका गोली चलाना और इस तरह गौडको उत्तेजना दिलानेका काम उचित था ! बोर जिरा भयानक दानको लिए पोलिटिकल एजेट जिम्मेदार था उस के लिए आप क्या कहेंगे? यह राही है कि पोलिटिकल एजेटकी हत्या एक दुर्भाग्यपूर्ण घरना है , पर इस के लिए कोन जवानदेह ? अगर एनटने उडीसा के देशी राज्यों को उचित सलाह दी होती और भय कार दमनमें खुद हिस्सा न लिया होता, तो लोग कानूनने बाहर न हो पाते। "यह घटना देगी राज्यों में काम करने के लिये चेतावनीस्वरूप होनी चाहिए, आपके इस कथन से तो मैं सहमत हूँ। पर साही,मय और अहिंसा के आप जैसे महान उपपेशकने भारत-सरकारक पोलिटिकल विभागको-और शासकर पूरबके देशी राज्यों की एजें सीगो भी आपने क्यों चेतावनी नहीं दीपियशी राज्यों की पूजाके साथ पेश आगे वे ऐसे अगली सरी के असयार न मारें? एजेसीकी कार्रनाई सचगुच ही गयकर है और पोलिटिकल एजंटकी इल्ला एजेसीकी नीतिकी पराकाष्ठा परिणाम है। यह घटना दुर्भाग्यपूर्ण जरूर है, पर एजेट इसके लिए दुद जवानदेह ना। और गीड़के द्वारा वध निगे गगे एजेंटको लिए अगर हमदर्दी जाहिर की जाती है, तो उस जगह जो दो बादमी-ज्यादातर पुलिसकी हिमाके परिणाम स्वरूप मारे गये उनके लिये सहानुभूति क्यों न जाहिर की बाय? मुझे तो ऐसा लगता है कि एजेंट पाजलगेटकी हत्या सबसे महले तो भारत सरकारको पोलिटिकल विभाग तथा देशी राज्यों के लिए, और तन बापको हमारे लिये गोतावनीस्वरूप शमली जानी चाहिए।" निस्सन्देह, आत्मरक्षाका अधिकार सब किसीको है, और इसी रारह सशस्त्र विद्रोह करनेका अधिकार भी है। पर गहराईसे विचार करनेके बाद काँग्रेसने जाम-बूबाकर बौनों का ही स्याग कर दिया है। काँग्रेसने ऐसा माल कारणों से किया है। अहिंसा, बिहारी-बड़ी उसे मनायों आगे भी उते रहने ओर पस्तहिकारत व होनेकी ताकत न हो, तो उसकी बहुत बड़ी कीमत नहीं। चाहे जितनी ज्तेजनाके सरने टिके रहनेको शाषितमें ही उसकी सच्ची कसौटी है। स्त्रियों का सतीत्व लूटा गया हो और उसे अपनो आयो बबनेपाले हिसाधावी साक्षी हो, तो थे जोयित कहाँसे रहेंगे? और सतीत्व लटकी घटनाओं का पीछेसे पता लगा, तो उस वक्स हिंसक बल प्रयोगका अर्थ ही यया रहा? अहिंसाफा सरोका तो पीछे भी कारपर हो सकता। अत्याचारियों पर मुकदमा चलाया जा सकता है या उनके कृत्यों को लोकमतके आगे सोलकर रखा जा सकता है। अपराधियों को अब भीड़के हवाले कर देना तो भारतापूर्ण ही समझा जा सकता है। एजेंटकी हत्याने सम्बन्ध रखनेपाली बलील प्रस्तुत है। मुझे एक तरफ राज्यकता तथा पोलिटिकल एजेंद, और दूसरी तरफ लोगों की कार्रवाइयों का व्याप कुछ तौलना तो था नहीं । एलेटको हत्याको साफ-साफ शब्दों में लिया करता, और यह भी सिर्फ सहानुभूतिकी