पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/२७

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गांधीजी भावनासे नहीं, बल्कि कांग्रेसको मौलिक नीतिका भंग करने और अनुशासनहीन कृत्यके लिव-इतना ही मेरे लिये काफी था। राजाओं के दुष्कृत्यों पर मैंने 'हरिजन' में अक्सर प्रकाश डाला है, पर इसलिये नहीं कि लोग उनपर गुस्सा उतारें,बल्कि लोगों को यह बतानेके ही एकमात्र हेतुसे कि ये उन दुष्कृत्योंका मुकाबला महिंसक होकर किस प्रकार कर सकते हैं। उड़ीसा खासा सुन्तर काम चल रहा था, इस बातके मैं काफी प्रमाण दे सकता हूँ। इस हत्यान, यहाँके आंदोलनमें, जो ठीक तरह से चल रहा था, खलल डाल दिया है। राणपुर आज भयानक जंगल बन गया है। निर्दोष और बोषी सभी भाग-भागकर छिप रहे हैं। बसनसे बचने के लिये धे घर-बार छोड़-छोड़कर घरों को धीरान करसे जा रहे हैं, क्योंकि यह बात तो है नहीं कि फेवल वास्तविक अपराधी ही दमनको चक्कीमें पिसेंगे। किसी-न-किसी रूप यहाँ आतंक फैलाया जा रहा है, और सारे हिन्दुस्तानको लाचार होकर यह सब देखना पड़ रहा है। सत्ताधारी अपने अफसरोकी-खासकर गोरे अफसरों की त्याका, सल करना किसी दूसरे तरीकैसे जानते ही नहीं। पर मुझे अपनी दलोलको अधिक विस्तार देने की जरूरत नही । लामकंगनको आरसी क्या? दोनों ही मार्गीको आज हिन्दुस्तानमें परीक्षा हो रही है। कार्यकर्ताओंको दोनों में से एक मार्ग थुन लेना है। मैं यह जानता हूँ कि भारतवर्ष केवल अहिंसा ही माणसे स्वतंत्र होगा। जो कार्यकर्ता काँग्रेसमें रहकर इससे अन्यथा विचार रखते हैं अगवा उलटी रीतिसे काम लेते हैं, वे अपने आपको तथा कांग्रेसको पक्का पहुंचा रहे हैं। हरिजन सेवक २८ जनवरी, १९३९ "डरकर भाग जाना कायरता है और कामरतासे न तो रामझौता हो सकेगा, न अहिंसाको ही कुछ मदद मिलेगी। कायरता हिंसाकी एका किस्म है और उसे जीतना बहुत दुरुवार है । हिंसासे प्रेरित' मनुष्यको हिंसा छोड़कर अहिंसाकी उत्तम शक्तिको ग्रहण करनेको समझाने में सफल होनेकी आशा की जा सकती है, लेकिन कायरता तो सब प्रकारको शक्तिका अभाव है।" -~-गाँधीजी