पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/२९

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बक्‍त एजेंसीकी सीमामें दूरकी जगह ले जाकर बुरी तरहसे पीठे गये।

गाँवभ भी स्वयं-

सेवकोंकेसाय ऐरा ही व्यवहार हो रहा है। ऐजेंसीकी पुलिस स्टेट एजेसीका नियरत्रण कर रही हैऔर गैर फौजी सीमामे' निजी मकानोंकी तलाशी ले रही है ।” बविध्शि भारतभे सबिनण-अवज्ञाफे दिसोंसें ब्रिटिश अधिकारी जो कुछ करते थे ब्रिटिश किलर

रेजिडेण्ट वही पुमरावृति कर रहा हूँ। में जानता हैँकि राजकोटकी जनता इन सब पागलूपनका खुद पागल घुए बगैर सुकावला , कर सकती हूँ और अपनेपर होनेबाज़ी ऋ्रताओंफों शांति शंगर बहादुरीके साथ बर्दाइत दररके विजयी हो नहीं होगी बल्कि ठाकुर साहबको भी आजाद करेथी। वह यह सिद्ध कर देगी

कि फांग्रेसकी सार्वभौम सताके मातहत घही सच्चा शासदा है । लेकिन भगर वह पागऊ हो जाय, और दुर्घल प्रतिशोधका उ्याल करफे हिसात्मक काम्मोंका सहारा ले, तो उसकी हालत पहलेसे भी बदतर हो जाथगी और तब कांग्रेसके सार्वभौगत्यका कोई असर नहीं पड़ेगा। कांग्रेसकी

सार्वभौम सत्ता तो ठीक उसी तरह उन्हींके काम आती है जो अधिसाफे इडेफो अपनायें, जैसे कि ब्रिदेनकशी सार्वभौम सत्ता 'जिसक्री लाठी उसकी भेराके सिद्धान्‍्तकों साननेघालों' के ही काम भाती है । राजकोटकी प्रजाफा जब शासक और उसकी जरा-तसी पुलिससे ही गहीं बल्कि साथाज्यके अनुशासनयुष्त गिरोहोंसेमुकाबला है,तब कांग्रेतका क्‍या कर्तेव्य है ? पहली और स्वाभाविक बात यहू है कि राजकोदकी प्रजाकी रक्षा और इज्जसके

लिए कांग्रेसी सन्त्रिमंडल अपनेको जिस्मेदार बना लें। यह सच है कि गवर्ममेंठ आाफ इण्डिया ऐप संत्रियोंकोरियासतोंके बारेसमें कोई अधिफार नहीं बेता। शेकफिन ये एक

ऐसे शक्तिशाली प्रांतके शासक है, जिसमें” राजकोट तो एफ छोटा-सा दुकड़ा गात्र है। इस

हैसियतसे गवर्नभें ८आफ इण्डिया ऐक्टके बाहुर भी उनको अधिकार और क्तेंब्य है जो'औौर भी अधिक महत्यपूर्ण है ।फर्ज कीजियेकिभारतमें जितने भी गुण्डे हो सकते हो वे शब राजकोट जा बसे, और यह भी समझ छीजिये कि वहाँसे वे हिन्दुस्तान भरमें' उत्पात भचायें, तो स्पष्ठ-

तया संज्रियोँकायह अधिकार और कर्तेब्य होगा कि बंबईसें रहुनेबाले भ्रिठिश प्रसिनिर्धिके द्वारा थे सार्वभौग सत्तासे राजकोठकी स्थिति सुधारनेको कहें । और सार्वभौन सत्ताका यह फर्ज होगा कि बहू या तो ऐसा करे था संत्रिमोंकोखो दे ।क्योंकि हरएक संत्री पर ऐसी हरएक

बातका असर पड़े ब्रिना नहीं रह सकता, जो उसके प्रात्तकी भौगोलिक सीभामें हो, फिर भाहे बहु उसके कूामूनी दायरेके याहुर ही क्योंन हो,>सासकर जम्न कि बहु बात उसकी शालीनतापर भी चोट पहुँचाती हो। उप भागोंमें'उत्तरवायी शासन हैया नहीं, यह देखना चाहे संत्रियों काकाम न भी हो। लेकित अभर उस भागों से प्लेग फेल़े थामारकाठसेतो उसपर ध्यान देवा उसका काम जरूर हूँ,नही तो उनके शासतकी लानत हैऔर वह साली धाम ही है। इस प्रकार उड़ीसाके घंधी अगर तालचेरकों २६,००० निराणितोंकोउनकी रक्षा और भाषण

तथा साभ्राजिक मे राजनीतिक झूपसे हिलने“मिलनेकी जाजादीका पुरा आपइवासन वेकर यनके

घर पहुँचानेमे क्रामयाब न हों, तो वे आरासके साथ अपनी कुसियोंपरनहीं बैठे रह सफते । शह०

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