पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/३९

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गांधीजी

(२) वर्तमान हिता और स्‌सीबतके वास्तविक कारण युद्धसे कभी दूर नहीं हो सकते । बुद्धफा अन्त करनेके लिये प्रयोग होनेचारे पिछले सुद्धने यह बात भलीभाति सिद्व वार वी हैँ और यही हम्रेशा सत्य रहेगी। इसलिये हिंसा अव्यवहारिक है।

(३) जो लोग यह महसुल करते हे कि (वे चाहे छोटी-छोटी बातोंके लिये न लड़े, फिर भी) स्वतंत्रता ओर प्रजातंत्रकी रक्षे लिये तो उन्हें लड़ना ही चाहिये, थे भामसे है। सोजूदा

परिस्थितियोंमें प्‌द्धका अन्य चाहे पिजयसे ही वयों न हो, फिर भी उससे हमारी रही-सही रबत॑7ताओँंका उससे भी अधिक निश्चिचत रूपमे अन्त हो जाता है जिम्तना कि किसी आफ्रमणकारीकी जीतसे होता। क्योंशि आजफल सफलताके साथ कोई युद्ध तवतक नहीं लड़ा जा सकता णयग-

पक सारी जनताकों फौजो नेबता डाला जाय।

उस फौजी समाजमे, जो कि दूसरे थुद्धके

फलस्वक्प जरूर 4; होगा, चाहे जीत उसमें किसीको क्यों न रहे, बन्पफ यसकर रहुनेकी अपेदा

जान-बूक्षकर अहिसात्सक्ष रूपमे अत्यावारका प्रतिरोध करते हुये भर जागा कहीं बेहतर है। नहीं के पक्षमों नीचे लिखी बलीलें हँ--(१) अहिसात्मक प्रतिरोध उन छोगोंफे मुकाबिलेमे ही कारगर हो श़कता है,जिनपर कि नैतिक और दया-सायाके थिचारोंका जसर पड़ सकता है। फासिज््षपर ऐसी बातोंका न केघल

फोई अस्तर ही नहीं पड़ता, बल्कि फ़ासिस्ट लोग खुले आम उसे कमजोरीका निश्चान बतलाकर घराकी खिलली उड़ाते हे। सब तरहके प्रतिरोध सत्म करनेपत किसी पश्ोपेशकी, श्रा उसके छिये चाहे जितनी पाशविफतासे काम लेनेकीवहपरवाह नहीं करता । इसलिये फासिज्मके आगे भहिसात्मक प्रतिरोध ७हर नहीं सफेगा। अतएय अधिसात्मक प्रतिरोध वर्तमान परिस्थितियोंमें बुरी तरह अग्यवहारिक है ।

(२) लोकतंत्रीय रक्षाके लिये होनेवाले हिसात्मक प्रतिरोधमोें (याने युद्ध था भुद्ध की आमसलाजिमी भर्लीफे समय )सहयोग बेनेशे इन्कार करना एक तरहुसे पन्‍हीं लोगोंकी भवद फरना हैँ,जो स्वतंत्रताको नष्ठकर रहेंहैं। फासिस्ट आध्रमणकों नि:स्सन्देहु इस बातसे बड़ी ७सेजना सिझी

हैकि भजातंत्रमें जनताके ऐ सेभी आदमी रहेहैजो भपत्ती रक्षाके लिये लड़ना नहीं भाहुते और युद्ध होनेपर भी अपनी सरकारोंका विरोध करेंगे और इस प्रकार युद्ध शुरु होने या किसी तरहफी लाजिमी सेसिक भर्ती होनेंपर अपनी सरकारोंकी सिन्‍दा करेंगे (और इस प्रकार रंकावट

चाहेंगे) । ऐसी हाकतमें, रक्षाके हिंसात्मक उपायोगर जान-बूक्षकर आपत्ति करनेबाला म

केवल शास्तिबुद्धिमें अप्रभावकारी रहता है, बल्कि वस्तुतः जो लोग उसे भंग कर रहे हैंउसकी

सदव करना हैं ।

(३) युद्ध स्वतंत्रताकों भले ही नाठ कर दे, लेकिन अगर प्रंजातैत्र बरकरार रहे तो फमसे कस उसका कुछ अंदा फिरसे प्राप्त करनेकी कुछ संभावना तो रहती है,जब कि फासिश्दोंको अगर

संसारका शासन करने दिया जाय तो उसकी बिलकुल कुछ गुंजराइव हो भहीं हैं । इसलिये

अंतःकरणसे पुद्धघपर आपत्ति करनेवाले छोग लोकसत्तात्मक दाक्तियोंकों कऋषजोर करते हुयेघिरीधिम्ोंकी सदद करके अपने ही'उद्देश्यकों भष्ट कर रहे है । श्धर्० !