पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/६५

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चीनी छोड़कर कॉग्रेंसनल यह मागते है, कि सला प्राप्त करनेके लिए शरफाश्से लड़नेगे ही इसका

उपयोग है । लेकिन कॉग्रेष!केपास संसररके लिए अहिसाका कोई सम्देश नहीं है, चाहे अपने

खुशीसे में भत्ते ही मान कि काँग्रेसके पास ऐसा संदेश है । दोनों प्रस्यावोंफे सारतत्वमें कोई बड़ा फर्क हो यह जरूरी नहीं हूं । खुद पछिदुरतानमें जो हिंसा! हो! रही है और कांग्रेसी सरकारोंकों भो पुलिस और फोलकी मयद लेनेके लिए मजबूर होधा पड़ा उसको देखते हुए चंधारके सामने जहिश्षाफी घोषणा करना सजादा ही भाऊजूस पड़ता है । उसका न तो

हिंदुस्तानपर कोई असर पड़ता ते संसारपर । इतनेपर भी अगर जुद जपये तई मेंसब्या है तो जो प्रस्ताव मेने बमाया उसके सिया और फोई नहीं यथ सफता था। उसका जो नतीजा हुआ उत्तने यह साधथित- कर विया है कि क्राँग्रेससे शपया याजाब्ता शंबंध पतोड़कर मेने

ठीक ही फिया । कार्य-ससितिफी बैठने में इसलिए इरीक नहीं हुआ कि उसके अस्थावों या उप्तकी साधात्य नीतिपर मेरी छाप पढ़े। में तो अहिसाके अपने मिक्षनयोे पूर्ण फरनेके लिए ही उनमें शामिल हुआ । जम्रतक वे लोग भेरी उपस्थिति चाहते है, में उसके कागों और उसके हारा काँप्रेसलनोंके आवरणमें अहिसापर जोर देनेके लिए धर्तों बला जाता हैँ । हण सब

एक ही भागके यात्री हैं। वे, सब थत्ति हो राके तो पुरी तरह मेरे साथ चलेंगे । जेफिन जैसे मेअपने तईं सच्चा रहना चाहता हूँ इसी तरह थे भी अपने तईीं और उस वैदके प्रति सत्ते रहना लाहते है जिसका कि इस समय ये भतितिधित्व कर रहे है। में जानता हूँकि अहिसाकी प्रगति जाहिरा तौरपर बहुत धीणी प्रगति है । केफिंग अगुभवने मुझे बतलाया है कि हमारे सम्मिलित लक्ष्यका यही सबसे निद्चियत भार्ग है। लड़ाई और शस्त्रास्प्ते न तो भारतकों मुफ्ति मिल सकती है, न संसारकों । हिंसा तो न्याय-प्राप्तिके लिए भी निष्फल साबित हो चुकी है । अपने इस पिश्वासके साथ अध्ठिसामें पूरी श्रद्धा रखने अगर फोई मेरा साथी न हो, तो में अकेला ही इस पश्रपर 'बजनेके झिए भी तैयार हूँ। हरिजम सेवक ” २६ अगस्त,

१९२९

के प््द्रया फी निर्वेयतावों सामने अहिसा की हिसाके साभने,, प्रेमकी हेपके सामने भौर सत्यकी झूठ के सामने ही परीक्षा हो सकती है । यह बात सही हो तो यह कहना गलत होगा कि खूनीके सामने अहिंसा बेकार है। हां,

यों कह सकते हैं कि खूबीके सामने अहिसाका प्रयोग करता अपनी जान देना है। लैकित' इसीसें अहिसाकी परीक्षा है ।” --गाँधीजी

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