पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/६७

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हेलियाँ एक प्रसिद्ध काँग्रेसनादी पूछते है“(१) इस युद्धके बारेगें जद्िसासे गेल खानेवाझ्ा आपका व्यवितगत रुछ यया है !

(२) पिछले महायुद्धके वक्‍त आपका जो रुव था वही हैथा शिन्न ? (३) अपनी अहिसाके साथ आप कांग्रेसरी, जिसकी नीति इस रायटरों हुसापर आधार

रुवती है,कीसे सक्रिय सम्प रखेगे जोर उसकी कैरो मदद करेंगे ? [८) इस युद्धका विरोथ करने गर। उसे रोकगेकेछिये आपकी ऐसी ठोस पजबीज पभा

है जिसका कि आधार अहिसापर हो ?” इन प्रश्नोंके साथ मेरी ऊपरसे दिशलायी फठनेवाली भरांगतियों य( मेरीभमम्पतानी उभ्यी और भमिन्नतापुर्ण शिकायत भी है । ये दोनों ही पुरावी शिकायतें हैं, जोशिकायत करनेवाजों-

की वृष्टिसे तोघिलकुल बाजिय है, पर सेरी अपनी दृप्दिरों विल्युल गैरपाणिव है । इसलिए अपने शिकायत करनबालों और मुझमें भतणेद तो होगा हं।। में तो सिर्फ यही कहूँगा, कि

जब से कुछ लिखता हूँ तोयह कभी नहीं घोचता कि पहले सैंने क्या कहा था। फिसी पिपेयपर

पहले जो कुछ मेंकह चुका हूँ,उससे संगत होगा मेश उद्देश्य नहीं है,धरिषा प्रस्तुत अवसरपर मुझे जो सत्य मालूम पड़े उसके अनुसार करना मेरा उद्देश्य है। इसफा परिणाम यह हुआ हैकि सें

संत्यकी ओर निरन्तर बढ़ता ही गया हूँ। अपनी याददाइतपो मैंने व्यर्थके दोशरो बचा लिया है

और इससे भी बढ़कर बात यह है कि जब कभी सुझे अपने पास घर्ष पहलेलकर्के फेसोकी तुलना

करनी पड़ी है,तो अपने ताजासे ताजा लेखोंसे उन दोगोंसें मुझे कोई असंगति नहीं गिली है। फिर

जो मित्र उसमे असंगति देखते हैं,उसके लिये अच्छा यह होगा थि। जबतफ पुरादेसे ही उन्हें कोई खास प्रेस ते हो, थे उसी अर्थकों ग्रहण करें, जो मेरे राबसे ताज! लेखोंसि निकजता हो!। लेफिन

चुभाव फरनेसे पहे उन्हें यह देखमेकी फोशिश करनी चाहिये कि ऊपरते दिज्ञाथी पेनेवाली अतंग्रतियोंके बीच क्या एक भूछशूत स्थायी संगति नहीं है ?

जहाँतक मेरी अगस्यताफा राबाऊ है, सिन्रोंको यह विदयास रज़ना पाहिए कि अपमे

विद्ार संबद्ध होनेपर उन्हें दबानेका प्रवत्य म॑'कभी वहीं करता । अगभ्यता कभी कभी तो संक्षेप फहनेकी मेरी इच्छाके कारण होती है, और फभी-फणी जिस विषयपर मुशसे राय बेनेके लिए फहा जाये उसके सम्बन्धके मेरे अपने अज्ञानके कारण भी होती है ।

नमूवेफे लौर पर इसका एक उवाहरण है। एक मित्र, जितके और भेरे बीच बुराधफी

बात कभी नहीं रही रोषके बलाय क्षोभसे लिखतेहु--

“भारती युद्धकी' अभिनेय-रथल्ली होनेपर जो कुछ अघटनीय घव्गा नहीं है, कया श्टट