गांधीजी चीजमें दरीक हैया नहीं ।संसार तो आज हिन्दुस्तानसे कुछ नयी और अपुर्वे चीज वखनेकी प्रतीक्षा
में है। काँग्रेसने भी वही पुराना जीणंशीर्ण कवच धारणकर जिया, जिसे कि संधार आज धारण फिये हुसे है, तोउत्ते उस भीड़-भड़वकाे कोई नहीं पहुचानेगा। काँग्रेलका नाम तो आज इसलिए
है फि घह सर्वोत्तम राजनीतिक शस्त्रके रूपमें अहिसाका प्रतिनिधित्व करती हूं। परांग्रेस सिश्र शाष्ट्रोकी अगर इस झूपमें भदद देती हैकि उसमें अहिसाकी प्रतिनिधि; बननेकी ध्षमता हैतो बह मिन्र-राष्ट्रोफे उद्देश्यकी एक ऐसी प्रतिष्ठा और शक्ति प्रशाण करेंगी, जो घुझुका ज्तिप
भाध्य निर्णय करनेगें अनमोल सिद्ध होगी किन्तु फार्य्रमितिफों सदस्थोंगे जो इस प्रकारकी अहिताफा इजहार नहीं फिया है,इसमें उन्होंने ईमानदारी और बहादुरी ही दिखायी है। इसलिए सेड्टी स्थिति अकेले भु्ततक ही सीमित है। मुझे अत्र यह देखना पड़ेगा कि इस एकास्स पथमें मेरें साथ कोई उूसरा सहयात्री है या नहीं। अगर में अपनेकी बिल्कुल अकेला
पाता हूँतो मुझे धूसरोंशें अपने सतसें सिल्लानेका प्रथत्त करता ही चाहिये। अकेला हो या अनेक साथ हों, में अपन विदवासकों अबदय घोषित करूँगा कि हिन्दुस्तानफी लिये गहु बेहतर है कि बहू अपने सीमान्तोंफों रक्षाके लिये भी हिलात्मक साधनोंका सर्वथा परित्याण कर दें। वस्त्रीकरणशी दौज़में शामिल होना हिन्दुस्तानके लिये अपना आत्मघात करना है। भारत जगर अहिसाको गयाँ देता हैतो संसारकी अन्तिम आश्यापर पादी फिर जाता है। जिस सिद्धान्तका गत
आधी सदीसे मेंदावः करता आ रहा हूँउसपर भेंजहर असल करूँगा।
और आखिरी सांसतक
में यह आदा रफ्खूगा कि हिन्दुस्तान भहिसाकों एक दित अपना जीवन सिद्धान्त बनायेगा,
भानथ जातिके गौरवकी रक्षा करेगा और जिस स्थितिसे सनुष्यते अपनेको ऊँचा उठाया, एथारू किया जाताहै, उसमें लौटनेंसेउसे रोकेगा। हंशिजन सेवक १४ अक्तूघर,
१९३९
“जीवन को मुत्यु की शय्या समझकर चले। इस्त मौसके विछ्ौने में' अकेले वे सोयें। हमेशा यभदृतकों साथ छेकर सोयें। मृत्यु ( बेवना ) से
कहें कि अगर तू मुझे के जाता चाहता है तो ले जा; मैं तो तैरें मुंह में' नाच
रहा हूँ। जब
तक नाचने देगा, बाचूंगा, वहीं तो तेरी ही गोद में
सो जाओँगा ।” | के
“गाँधीजी
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रे ,