पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/७४

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हिन्द-मुस्लि दंगे अभर कोई इस घातका सपूच्र चाहे कि काँग्रेसकी अहिसा सचगुघ स्वगित या निष्फिन हिंता थी, तो इसकी सबूत हिल्दूँ-मुसलिस दंगेसे प्रदर्शित प्रभापकारी हॉल फि पिल्कुल अमुशासन-

हीन साफ, रूपसा दिया जा सकता है। थदि खिलाफत आप्दोलगर्मों भाग लेनेद्ाले हाएों छिल्ू-गुरालमान सच्चे घिलसे जहिसक होते सो थे जाज एक उुसरेफ भरति इसने दिसाएुणे न होते,जितने कि जाजकछ थे ऊुगातार पाये जाते हैं। जोर यह भी कछर णा सफता हैफि इन दंगीसें भाभ लेसेताऊे तगकों गैर-फाँग्रेसी फरार दे दिया जाये, यो काँग्रेषकी आम उमगावो संस्या कहता उोड़ देता पड़ेगा । क्योंकि दंगोंगें भाग छेगेवाले हिन्द और शुतज्भाष अत्म धयतामेंसे ही

निकलते हूं। फिर एके अकावा एम कांग्रेसी सभाओंनेंएहु भी देखते ( कि प्रतिस्पर्धा फाँग्रेसी एक वूसरेके (वहद्ध भी हितापर उपर आते है। कॉग्रेलफे युगावींमे एिज्ञाया धाउेयाणा अनुद्ञासल-

भंग और फरेब ही इस बातका प्रशाण है कि कॉप्रेशर्मे भी हिंसा भोजूद है ।इृशालिए यह कहना कि कोत कॉँग्रेसी-यदि कोई है--अधहिसफ है, फठिय है। थदि जहिसक काँग्रेसी अधिक संण्यारों होते और यदि हिंस्दू मुस्छिप्त दंगों प्रभावदारी भाग लिया होता तो पे एन दोनोंको बन्द कर सकते थे य कम्से कम हन्हें बच्च करतेफी फोशिशर्म अपत्ती जान दे सफते थें। यदि ज्यावातर काँग्रेसी सब्चे भहिसक हीते तो भुसलमात भी यह मानते कि फॉग्रेसियों पर सुस्लिम विरोधी

होगेका दोष नहीं छाबा जा सकता। काँग्रेसियोंके लिए इतना हो कहना काप्ली भहीं हैकिउसका रुख बिल्कुल निर्दोष है। मेंभले ही कामूमी तौरपर कवरा उतर आऊँं लेकिव अगर हिसाकी तराजूपर मेरे का्मोंकी तौफ़ा जाय तो वे भी बुरी तरह असफल सिद्ध हो सकेंगे। केफिन अहिसा

तो शूरषीरों तथा 4 ढ़लोगोंकी ही अध्विसा होनी चाहिये। अहिसाफी भावना आंतरिक अश्यासे उरपन्न होगी जाहियें इसलिए भेंने यह कहेंगे घाभी भी संकोल नहीं किया कि यदि एसारे हृदयोंमें हिंसा हूँतो अपनी नपुसकता छिपानेके लिए अहिसाकी चोला पहनले की अपेक्ष! हिसारएसक रहता

ही अच्छा है। नपुसकताकी अपेक्षा हिंसा ही हसेशा अच्छी है। एक हिसकसे वाभी भी अध्िसक होनेकी उ्सीव की जा सकती है, लेकिन नरपुसकंसे कभी ऐसी आशा हीं की ज! सफती है। हरिफन सेवक

२१ अवतूमर, १९१९

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