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ग्रमोद्योगोंका नाश हुआ । आनेवाली शासन-व्यवस्थामं घड़े उद्योग गाँवों और उनकी

कारी-

गरीके मातह॒त रहेंगे। मेंसमाजवादियोंकी इस सान्यतासे सहमत नहीं हूँकि जब बड़े कारखानों की योजना बसानेबाला और उसका मालिक, राष्ट्र होजायगा तब जीवनके लिए जरूरी चीजें

बड़ेकारसानोंगें ते यार करने से आम लोगोंका भला होगा । हेतुतो पद्चिचमी और पुर्वीदोनों तरह की कल्पनामें एक ही है,यानी यह कि सारे समाजको अधिक-से-अधिक सुख भिले और जिस घिनौने भेदभावके कारण एक तरफ करोड़ों नंगे-भूछे और दूसरी ओर मुद्दौभर मालवार आदसी रहते है बह भेदभाव सिट जाय । भरा विववास हैकि यह उद्देश्य तभी सफल हो सकता हैजब संसारके अच्छे और विचारशील लोग मान ले कि अहिसाके आधार पर ही न्यायपु्ण समाज-ध्ययस्था रची जा सकती है । मेरी रायमें गरीबोंफे हाथमे हिसा द्वारा सत्ता लानेकी कोशिद् अंतर्में पार नहीं पड़ेगी । जो चीज हिंसासे हासिककी जाती है चह उससे बढ़कर हिसाके सामने नहीं टिक सकती ,

और हाथसे मिकल जाती है । अगर कांग्रेसवादी अपने अहिसाके ध्येय पर सच्चे रहें और उसपर अमर करें तो भारतका उद्देश्य पूरा हुआ ही समझना चाहिए । इस सच्चाईकी परीक्षा हैरचनात्मक जनता और वैदा, बोनोंका कार्यक्रमको पुरा करना। जो लोग आम जनताके विचारोंफो भड़काते हे वे

नुकसान करते हैं । उनका हेतु ऊँचा होता है, इस बातसे यहाँ सरोकार नहीं । कांप्रेसवादी रचसात्मक कार्यकम पर पूरी तरह और सच्चाईके साथ असल क्यों नहीं करना भाहुते ? जब सत्ता हमारे हाथमें आ जायगी, तब दूसरे फार्यक्रमोंपर विचार करनेका वबत आयगा | मगर हम तो बेंसचिल्ली ठहरे । दंतकथा हुँल-कि सेस खरीदनेसे पहले ही उसके बेंटवारेफे बारेसें साक्षीवार

झगड़ बैठे ।इसी तरह स्त्रराज तो भिछा नहीं ओर हम हैंकि अपने जुवा-जुदा कार्यक्रमोंके बारेसें बहुस और झगड़े कर रहेहै |सुशीलताका तकाज हैकि जब बहुसतने एक कार्येक्स मंजूर कर लिया

तो सभी उसपर सच्चाईके साथ असल करें। इसमें तो कुछ भी धाक नहीं हैकि कांग्रेसके कार्यक्रसफे जिन वूसरे अंगोंसे उस कार्यक्रमकी अवलक जोभा बढ़ी हैं औरजिचकी तरफ डॉक्टर लोहियाने संकेत किया हैउन्हें भ्रतिशाफे कारण छोड़ बेनेकी जरूरत नहीं है । हर तरह॒के अन्यायके विरुद्ध आन्दोलन करना तो राजनीतिक

जीवनका प्राण है ।॥ सेरा जोर इसी बात पर हैकि उस आर्वोलनको रचतात्मक फार्यक्रमसे अलूग कर वेनेसे उसमें हिसाकी झलक आ ही जायगी। में अपनी बात उदाहुरण वेकर संगझाऊँं।

अहिसाके प्रयोगोंसे में यह सीखा हूँक्रि अभी अधिसाका अथे ध_्रब लोगोका पारीर-भभ है । एक रूसी वाद निक बोर्डरेफनेइसे रोटीके छिए अम कहा है । इसका परिणाम यह होगा कि लोगोंसें आपसभ' गहरे-से-्गहरा सहयोग ही। वक्षिण अफ्रीकाके पहिले सत्याग्रही सबकी भलाई भौर संस्मिल्ित कोषके लिए मेहमत करते थे और उन्हें उड़ते पक्षियोंकी सी बेंफिकी रहती थी।

उनमें हिन्दू, सुसल्‍ूमान (शिया और शु्षी ), ईसाई (पोटेस्टेंट और रोभन कैयोलिक ),पारसी और यहुदी सभी थे। अंग्रेज और अर्मन भी थे। धस्धेके लिहाजसे उसमें वकौछ, इमारत और ब्रिजलीकी विद्या जाननेवाले इंजीनियर, छापनेषाले और व्यापारी थे। सत्य और अहिसाफे व्यवहारते धॉमिक झगड़े सित एये थेऔर हमने सब धर्मों सत्यके वर्शन करमा सीख लिया था ।

वक्षिण अफ़रीकास मेने जो आश्रम कायम किये उनसे एक भी सजहबी क्षगढ़ा हुआ हो ऐसा सुझे

याद सहीं झ्ात्ता । संब छोग छपाई, बढ़ईगिरी, जूते बताना, बागवानी, इमारत वगैरह, हायके

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