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गांधीजी

और अविनयपूर्ण आज्ञाभंग करके दबानेकी गुंजायश नहीं रखी गयी है । लेकिन आश्ञा-भंगकी

धमकी तो हैही, और चूंकि शुद्ध अहिसा भी अभी तो नहीं है इसलिए लड़ाईकी धमकी मात्रसे भी हिंसक विचार जागृत हुए बिना नहीं रह राकते और जिस सदुभावके बढ़ानेकी प्रतिज्ञा ली गयी थी उसकी कोई भाशा दिखायी नहीं देती । तोफिर क्या लेन-देनके आधार पर किया

गया समझौता अधिक उपयुक्त साधन नहीं है, जिससे

(१) अहिसक वायूमण्डरू उत्पन्न किया जा सके ; (२) सद्भाव पैदा हो सके ;

(३) अंग्रेजोंकी' सर्वोत्तम वृत्तियाँ जागृत की जा सर्के ; और (४) परस्पर सहयोगके जरिये स्वाधीनता-प्राप्तिफा जर्दीका रास्ता खोजा जा सके ?

इस बलोलसे लेखकके हृवयकी तो तारीफ होती है, लेकिन*वे अहिसाके तरीकेको नहीं समझे। ते आधी बात सानकर चले हें। हमारा लक्ष्य अंग्रेजोंकी सर्वोत्तम वृत्तियाँ जागृत करना ही नहीं है, बल्कि अपना काम करते हुए जागृत करना है। हम अपने भार्गपर चलता छोड़

वेंतो उनकी सबृवृत्तियाँ नजगाकर उनकी दुव्‌त्तियोंकों बल पहुँचायेंगे। सद्वृत्तियोंको जगानेका अर्थ खुश करना नहीं है। जब हमें किसी बुराईसे निपटना है तो हमें बुराई

करनेवालेको

अशांत करनेकी जरूरत हो सकती हैँ । हमें उसके सदृगुणोंका बिकास करना है तो यह जोखस उठाना ही पड़ेगा। मैंने अहिसात्मक उपायको जहर न फेलने देनेवाले और हिसक उपायको जहर भारनेवाल़े इलाजको उपसा दी है। दोनोंका उद्देश्य बुराईको सिटाना ही है

और इसलिए उनसे कुछ-न-कुछ अशान्ति तो होती है। अक्सर बह अनिवार्य होती है। पहुछा इलाज बुराई करनेबालेको हानि नहीं पहुँचाता।

जहाँ में समालोचक सिन्रकी इस बातसे सहमत हूँकि हमारी अहिंसा शुद्ध नहीं रही है, यहाँ में इस स्थालसे सहमत नहीं हूँ किहम बुरी तरहु भसफल हुए हैं। मेंयह नहीं मान सकता. कि कांग्रेसी ञासनका समय अहिसाका सर्वोत्तम समय था। उन बिनों अहिसा सिष्किय रही ।

एक पक्ष दूसरेफो खुश रखनेकी कोशिश करता था। वोनोंके विलोंमें तो और ही कुछ था, पर अऊपरसे एकही तोति पर चलते विखाई देते थे। अहिसाका कोई प्रत्यक्ष प्रभाण हमने दिया हैँ तोयह दिया हैकि कांग्रेसके असरसे हिसक कार्रवाई बिल्कुल नहीं होने पायी है । बहुत

तजदीक होनेके कारण हम इस बातका सही-सही साफ करनेमें असमर्थ हैं कि करोड़ों स्प्रीपुराषोंने कितना भारी संयम रखा है। में कबूछ कर छेता हूँकि अभी हमारे दिजोंसे अहितसा नहीं भिकली हूँ। सगर जनताके आइचर्यजनक संयसको देखकर भुझे बहुत आशा होतो हैकि दिलोंकी हिसा समय पाकर विरोधीके लिए सदुभावमं बदल जायेगी। समालोचकर्फी सीतिको मेंभीरता ऋहुँगा, उसपर चलतेसे यह मात कभी पैदानहीं होगी। वैर-भाव तभी नष्ट होगा

जब उसे भूल्ों मारतेके लिए काफी अर्सेतक संग रखा जायगा। अच्तसें जाफर अंग्रेजों अतपर भी इसका असर उतना ही क्षच्छा होगा। जंग्रेजोंको पता लग जायेगा कि जहाँत्तक अहिसासे कास्त छिया गया चहाँतक भह सच्ची थी और विलोंसें उनके जिलाफ शिकायत रखते हैंए भी , साधारण जपता घहुत संयम रख सकी । ी

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