पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/१२३

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है। कार्तवीर्यार्जुन इसी स्थान पर निवास करने थे। इस बस्ती को आज भी “सहस्त्रबाहु की बस्ती" कहा जाता है।

रावण ने इस नदी के प्रवाह को रोकने के लिये इस स्थान के पास अपनी शक्ति भर प्रयत्न किये, परंतु इसके जल के प्रवाह का बंद होना तो एक ओर रहा, वह इस स्थान पर हजार धारा हो कर बही है। इस विशेष कारण से इस स्थान पर इसका नाम सहस्त्रधारा प्रसिद्ध है। यहाँ का दृश्य अहयंत प्रेक्षणीय है। इन सब कारणों से यह शहर पौराणिक समयों से प्रसिद्ध था ही, परंतु ऐतिहासिक समय में भी इसकी प्रसिद्धि में कमी नहीं होने पाई।

मल्हारराव की मृत्यु के पश्चात् अहिल्याबाई ने महेश्वर स्थान को अपना मुख्य स्थान बनाया था। यह स्थान नर्मदा के किनारे पर ही बसा हुआ है। यहाँ ऐसे बड़े-बड़े प्रचंड घाट है कि उनके समान समस्त हिंदुस्थान में अन्य स्थानों पर कचित ही दृष्टिगत होता है। बाई का निवास-स्थान घाट से लगा हुआ ही था। उन्होंने अपने तुलसी वृंदावन की ऐसे उत्तम स्थान पर स्थापना की थी कि वहाँ से नर्मदा का दृश्य उत्तम रीति से दृष्टिगत होता है। अहिल्याबाई ने महेश्वर स्थान की उन्नति तन, मन तथा धन दे कर की थी जिससे इस स्थान को पुन: पौराणिक काल का महत्व प्राप्त हो गया था। किसी स्थान का महत्व नष्ट हो जाना तथा पुन: प्राप्त होना, यह समय के प्रभाव से होता है। घाट के समीप बाई की एक अति उत्तम और प्रेक्षणीय छत्री बनी हुई है और उसके भीतर एक शिवलिंग और