सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/१२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
( ११५ )


लिंग के समक्ष बाई की मूर्ति स्थापित है । यह गाट और छत्री बाई के स्मरणार्थ महराज यशवंतराव होलकर ने बनवाई थी । इस काम के समाप्त होने में ३४ वर्ष का समय लगा था और इसमें लगभग डेढ़ करोड़ रुपया व्यय हुआ था । इस छत्री को यदि मध्य हिंदुस्थान के ताजमहल की उपमा दी जाय तो युछ अतिशयोक्ति न होगी ।

इस घाट के समीप बहुधा लोग मछलियों को राम नाम की गोली अथवा चने खिलाया करते हैं । उस समय कुछ मछलियों की नाक में सोने की एक पतली नथ जिसमें दो मोती होते हैं, दृष्टि पड़ती है। ऐसा कहा जाता है कि एस प्रकार की नथें मछलेड़यों की नाक में अहिल्याबाई ने ही डलवाई थीं। नथ पहने हुए मछलियाँ कभी कभी आज दिन भी दृष्टिगत होती हैं ।

छत्री में शिवलिंग का पूजन और बाई की प्रतिमा का पूजन नित्य प्रति आज दिन भी होता है। इस स्थान के दर्शन मात्र से और व्यवस्था को देख कर दर्शकों को राजसी ठाठ दृष्टिगत होता है। यहाँ पर नित्य प्रति शिवलिंगार्चन के हेतु ब्राह्मण नियत हैं और एक उत्तम मंदिर राजराजेश्वरी का है और घी का दीपक दिन रात जला करता है। इस स्थान पर घड़ी, घनटा और चौघड़िया की भी व्यवस्था है और श्रावण मास में ब्राह्मणों को इस स्थान पर विशेष रूप से भोजन और दान-दक्षिणा दी जाती है ।

चिकलदाः--इस स्थान पर नर्मदा की परिक्रमा करनेवाले के लिये बाई का स्थापित किया हुआ एक अन्नसत्र है ।