अहिल्याबाई ने अपने धार्मिक आचरणों से इस प्रकार की विलझण भावना लोगों के मन पर अंकित करा दी थी, जिनका परिणाम हिंदू प्रज्ञा मात्र पर होना तो सहज और स्वाभाविक ही था परंतु जिनसे मुसलमानों के मन में भी धार्मिक भाव उत्पन्न होते थे । ये बाई को आदर की दृष्टि से देखते थे। हैदर, टीपू, निजाम, अयोध्या के नवाब ये सब बाई को सम्मान देते थे। इस विषय में एक हास्यजनक लेख इस प्रकार से है कि तुकोजी राव का पुत्र मल्हारी मूर्खता और उद्दंडता के कारण प्रजा को सताया करता था। जब यह समाचार बाई को विदित हुए तब उन्होंने उसे ताड़ना देकर समझाया और कह दिया कि यदि पुनः मैं तुम्हारी उद्दंडता सुन पाऊँगी तो तुमको यहाँ से गधे पर बैठा कर निकलवा दूँगी। इस प्रकार मल्हारी को भय दिखला कर छोड़ दिया। परंतु नटखट लड़के अपना स्वभाव सहज में नहीं छोड़ देते। उसने फिर लोगों को त्रास देना आरंभ कर दिया। जब बाई ने उसको पकड़ कर अपने सामने उपस्थित करने की आज्ञा दी तब वह पूने की तरफ चला गया, और कुछ दिन रह कर वहाँ भी उसने अपने हतकंडे लोगों पर चलाये। तब लोगों ने असंतुष्ट हो कर उसका तिरस्कार कर दिया और कहा कि "शेर के घर में बकरी! इसके इस प्रकार के कृत्यों से बाई और तुकोजी के नाम पर क्या धब्बा न लगेगा?"
मल्हारी के इस प्रकार के चरित्र देख नाना ने, जो वहाँ बाई की ओर से नियत था, संपूर्ण ब्योरा बाई को लिख भेजा। उसके उत्तर में बाई ने कहला भेजा कि उसको मेरे