को भूली हुई थीं; पर दुर्भाग्यवश यह भी चिरकाल तक न रहा। पुत्र की जिस प्रकार मृत्यु हुई थी, उसका वर्णन तो पिछले भाग में दिया जा चुका है; परंतु उनकी वृद्धावस्था में उनकी पुत्री मुक्ताबाई का पुत्र जिसका नाम नत्थु (नत्थोबा) था और जिसको बाई ने सांसारिक सुख का आधार मान रखा था, तथा जिसके जन्म से लेकर मरण पर्यंत उसके लाड़चाव में अधिक धन का भी व्यय किया था, वह बीस वर्ष की अवस्था को प्राप्त होते ही स्वर्ग को चल बसा । इतना ही नहीं वरन् उसने अपने माता पिता को भी इस संसार रूपी भव सागर से मुक्त कर दिया ।
हम ऊपर कह चुके हैं कि मुक्ताबाई के लड़के को बाई अपना सर्वस्व माने हुए थीं । इस कारण बालकपन से ही उन्होंने उसको अपने पास रखा था । समय समय पर जब कभी मुक्ताबाई चाहती थीं, नत्थू को बुलवा भेजती थीं । इसी प्रकार मुक्ताबाई ने अपने पुत्र को महेश्वर में इंदौर से बुलवा भेजा जिसको बाई ने भी सहर्ष बिदा कर दिया और कुछ काल वहाँ व्यतीत कर पुनः अपने पास आने को कह दिया था । महेश्वर पहुँच कर नत्थू कुछ दिन आनंदपूर्वक रहा । परंतु फिर उसको शीत ज्वर हो गया और थोड़े समय के पश्चात् यह ज्वर काल ज्वर में परिणत होकर उसको सदा के लिये उठा ले गया । एकाएक उनके जीवन के आधार प्राणप्यारे एकमात्र पुत्र का श्वास बंद हो गया । उस समय अभागे माता-पिता दुःख से संतप्त हो विलाप कर छाती पीटने लगे, माथा फोड़ने लगे, परंतु सब व्यर्थ था ।