पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/१३६

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अपने प्रियतम जल के वियोग से बिखर जाता है, वैसे ही तू प्राण प्यारे एक मात्र पुत्र के बिछोह से दूक टूक हो छिन्न भिन्न क्यों नहीं हो जाता ? यह कहते कहते यशवंतराव पृथ्वी पर गिर छटपटाने लगे । सारे शरीर में धूल ही धूल दिखाई देने लगी । आँखों से अश्रुओं का स्रोत बड़े वेग से बहने लगा ।

बेचारी मुक्ताबाई अपने प्राणप्यारे पुत्र को मृत्यु-शय्या पर लेटे देख व्याकुल हो नाना प्रकार से अपने अंतःकरण का दुःख हृदयविदारक शब्दों में गला फाड़ फाड़ कर प्रकट करने लगीं । प्यारे पुत्र, मैंने तुम्हारे हितार्थ कितने देवी देवता पूज तुमको चिरंजीव रखने का यत्न किया । मैंने प्रसव काल की यातनाओं को केवल तुम्हारे प्रेम के कारण ही भुला दिया था । तुम मेरे घर के, कुल के और अंत:करण के प्रकाश थे । बचपन की तुम्हारा मंद मंद मुसकान, हाथ पाँव का पसारना, तोतली और मधुर बोली और वह मनमोहन हास्य, किसी वस्तु को पाने के लिये मचल कर पृध्वी पर लेट जाना, तुम्हारी प्रेम भरी चीख, मेरी उँगली पकड़ कर अटक अटक कर चलना, सब आज मेरे हृदय में प्रगट होकर मुझे रसातल में ले जा रहे हैं । मैंने केवल तुम्हारे मुखचंद्र के दर्शन के सहारे माता से, पिता और भाई के दुःख रूपी शोक समुद्र को पार कराया था । हे! परम तेजस्वी नत्थू, तुम्हारे अभाव से अब माता की क्या दशा होगी ? अब कौन उसे प्रति पल, प्रति घड़ी, और प्रति दिन चंद्रकमल सदृश प्रतापवान् मुख का दर्शन देगा । मेरे प्राणों के प्राण, बुद्धि की शक्ति और उन्नति के सेतु नत्थ, तुम्हारी नानी की क्या दशा होगी ? बेटा तुम उसके जीवन में