पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/१३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
( १२८ )


सुख के आधार थे, तुम्हारे चंद्रानन को देख वह प्रसन्नचित्त रहती थी । भैय्या, अब कौन उसकी दुःख की दावाग्नि को संतोषदायक वचनों के जल से सींच कर शांत करेगा ? जब दु:ख और शोक के कारण माता के नयनों से उष्ण अश्रुओं का प्रवाह बड़े वेग में निकलने लगता था, तब तुम अपने कोमल हाथों से पोंछ उसे अपनी ओर आकर्षित कर लेते थे और अपने मृदु वचनों में प्रसन्न कर देते थे । बेटा, यद्यपि माता को पुत्र सुख का यथेच्छ स्वाद नहीं प्राप्त हुआ था तथापि वह तुम सा अमूल्य धन और आज्ञाकारी पुत्र पाकर सुख का पूरा अनुभव करती थीं । बच्चे, माता सब दु.खों को उठाकर कष्टों का आधार हो रही थी तो भी तुम्हारे प्रेम के कारण वह दु:खित देखने में न आई ! वह तुमको सब प्रकार के ऐश्वर्य का जनक समझती थी । जब वह गाय की तरह अपने बछड़े को चूमने चाटने के लिये दौड़कर आवेगीं तब तुम बिन उनकी क्या दशा होगी ? प्यारे पुत्र, इस संसार में ऐसा कौन साधन हैं जिसको देकर तुमको जीवित कर लूँ ? हा प्यारे नत्थू तुम अपने पिता को, माता को और मुझको इस अथाह संसार में डुबाने की चेष्ट मत करो । क्यों मौन हो गये ? उत्तर क्यों नहीं देते ? यह कहते कहते पुत्र की लोथ को छाती से लिपटा कर रुदन करने लगीं ।

अपने पुत्र के एकाएक देह त्यागने का समाचार यशवंत राव ने अहिल्याबाई के पास भिजवाया । उसे सुन वे एकाएक स्तब्ध हो निर्जीव सी हो गई और मुखमलीन अति दीन हो अपना मस्तक पीटने लगीं । इस समय उनका