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पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/१३९

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मनुष्य का मन उधर खिंच जाता है तो उसको अत्यंत सुख, होता है, परंतु उसके बिछोह से उसको अत्यंत कठिन दुःख और कष्ट होता है। और कोई कोई तो प्रेमी के अभाव अथवा बिछोह के कारण अपना शरीर तक नष्ट कर देते हैं। पर जितना इसमें सुख भरा है उतना ही दुःख भी है।

अपने एकमात्र पुत्र के बिछोह के कारण प्रेमवश हो यशवंतराव एक वर्ष पश्चात् (सन् १७९१ ई० में) काल कवलित हुए। अपने प्राणेश्वर जीवन के आधार प्राणप्यारे पति की मृत्यु शैय्या पर देख मुक्ताबाई भी प्रेम के कारण दुःख से दुःखित हो पृथ्वी पर छटपटाने लगी।

यह वृत्तांत सुन सारे नगर में हा हाकार मच गया। नवयौवना मुक्ताबाई की कमल सी आँखों से अश्रुओं का स्त्रोत बह चला और प्रेमवश हो कहने लगी, नाथ! प्राणेश्वर! मेरे जन्मांतर की तपस्या के फल! क्या तुम सत्य ही मुझे छोड़कर परलोक सिधार गये? प्रियतम! मुझ अबला को किसे सौंप कर स्वयं निपट निठुर हो किस गुप्त स्थान को चले गये? प्राणनाथ, तुमने जो कुछ मुझसे कहा था उसको ठीक स्मरण तो करो, तुमने प्रण किया था कि तुमको नेत्रों से कभी दूर न करूंगा। नाथ, वह प्रतिज्ञा आज कहाँ गई;? क्या तुमको अपनी असहाय स्त्री को दुःख सागर में छोड़ना उचित था? प्राणेश! नेक ध्यान देकर जरा देखो, तुम्हें छोड़कर मेरी दूसरी गति नहीं है। मैं तुम्हारी शरण में हूँ, तुम शरणागत के प्रतिपालक हो, तुम्हें मेरे साथ, मुझे प्रेमपात्री बनाकर, ऐसा बर्ताव करना उचित नहीं था।