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पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/१५६

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उनका मन अंधविश्वास में गहरा डूबा हुआ होने पर भी ऐसे कोई विचार उनको उत्पन्न नहीं होते थे जो उनकी आश्रित प्रजा के सुख में बाधा डालनेवाले हों। अनियंत्रित राजसत्ता का पूर्ण अधिकार बड़ी योग्यता के साथ काम में लाती हुई भी वे अत्यंत विनीत भाव से ही नहीं किंतु मनुष्य के कार्यों पर तीव्र कटाक्ष करनेवाले विवेक के नीतियुक्त बंधन में सब कार्य करने वाली थी और इतना होने पर भी वे दूसरों के अपराधों को अत्यंत दया की दृष्टि से देखता थीं।

मालवा के लोग बाई के विषय में जो वर्णन करते हैं वह ऐसाही है। और तो क्या ये लोग बाई के नाम मात्र को भी पावत्र समझ उनको अवतार मानते हैं। यथार्थं में उनके चरित्र की ओर गंभीरता की दृष्टि से देखा जाय तो यह स्वयं मालूम होता है कि अपने नियमित राज्य में उनका अत्यंत पवित्र और धार्मिक शासन था। वे आदर्श शासक थी। अहिल्याबाई एक ऐसा उदाहरण हो गई हैं कि अपने को ईश्वर के समक्ष उत्तरदाता समझ कर संसार के संपूर्ण कर्तव्यों का पालन करनेवाला अपने अत:करण से कितना सच्चा उपकार कर सकता है इसका वे एक उत्तम नमूना बन गई हैं।

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