मार्ग से निकली और जब बाई ने रास्ते पर मनुष्यों की अधिक भीड़ देखी तो प्रश्न किया कि यह जमाव किस कारण से हो रहा है । उत्तर में मालूम हुआ कि अनंतफंदी अपना खेल कर रहा है । अनंतफंदी के नाम के श्रवणमात्र से बाई को ऊपर कहा हुआ उपदेश स्मरण हो आया । वे विचार करने लगीं कि इसने अपनी वृत्ति उसी प्रकार धारण कर रखी है । इसको फिर शिक्षा देनी चाहिए । यह सोच बाई भी उसी स्थान पर पालकी में पहुँच गईं जहाँ पर खेल हो रहा था । अहिल्याबाई यहाँ आ रही हैं, जब यह बात वहाँ के प्रमुख प्रमुख मनुष्यों को और अनंतफंदी को ज्ञात हुई तब उसने अपने साथी खेलवालों का अलग वैठा कर वह आप बड़े प्रसन्न चित्त से इस पद को गा कर नृत्य करने लगे।
मुख मुरली मनमोहन मूरत, देखत नैन सिरावत हैं ।
ग्वाल बाल संग वृंदावन ते, वेणु बजावत आवत हैं ॥
नटवर भेष अलौकिक शोभा, कोटिन मदन लजावत हैं ।
निरखि निरखि बलवंत श्याम छवि, रैन दिना सुख पावत हैं ॥
अनंतफंदी बड़े प्रेम के साथ कीर्तन गा रहा है, और सारा समाज बड़े शांत भाव से कभी बाई की पालकी का और कभी फंदी के नृत्य का अवलोकन कर रहा है--यह दृश्य देख सुन कर बाई का हृदय प्रेम से गदगद हो गया । फंदी के लिये यह कीर्तन का पहला ही समय था । परंतु ईश्वर की इच्छा से उस समय ऐसा जान पड़ता था मानो स्वयं आनंद ही देह धारण करके उपस्थित हो गया हो । जब कीर्तन समाप्त