पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/४२

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राव ने अपनी विशाल सेना के साथ जिसमें पुत्र खंडेराव भी सम्मिलित था, चढ़ाई की । दूसरी तरफ जाट लोग किले पर से मरहठा फौज को परास्त करने के हेतु दृढ़ संकल्प कर नाना प्रकार की व्यवस्था कर रणभूमि में आ उपस्थित हुए । इस युद्ध में मल्हारराव के रणकुशल वीर अधिक काम आए थे और इसी युद्ध में खंडेराव की मृत्यु भी हुई थी । कहते हैं कि खंडेराव घोड़े पर सवार होकर अपनी सेना के झंडे के पास खड़े रह कर सेना के बहादुर सिपाहियों को संग्राम में साहस और वीरता के साथ लड़ने के लिये उत्तेजित करते जाते थे, परंतु काल की गति कराल होती है । दुश्मनों की तरफ से किसी सिपाही ने एका-एक खंडेराव की छाती में गोली मार दी गोली के लगते ही वे तुरंत घोड़े पर से नीचे गिर पड़े और थोड़े ही समय में उनके प्राणपखेरू उड़ गए । इस हाल को सुन कर सेना में कोहराम मच गया और सेना तितर बितर होने लगी । मल्हारराव जो कि दूसरी तरफ दुश्मनों की सेना का मोरचा बांध लड़ रहे थे अपनी सेना को इधर उधर होते हुए देख बड़े आश्चर्य में हो गए और विचारने लगे कि ऐसे वीर सिपाहीं जो काल से भी एक समय पर नहीं हटनेवाले हैं कैसे पीछे हट रहे हैं ? दुश्मनों का भी साहस इस समय घट गया है और उनके पैर भी उखड़ चले हैं । वे ऐसा विचार कर ही रहे थे कि उन्हें सामने अपनी फ़ौज का नायक घोड़ा भगाते हुए देख पड़ा और इनकी बाई आँख और भुजा जोर से फड़कने लगी । यह देख इन्होंने समझ लिया कि कोई अशुभ