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पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/४४

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की धूल को धोने लगे । इनकी ऐसी अवस्था को देखकर सारी फौज दुःखमय होगई, मानों दुःख का सागर ही इन पर उमड़ पड़ा । सब योद्धागण अपने प्राणप्यारे मालिक के दुःख से दुखित होकर मल्हारराव को समझा रहे हैं कि इस संसार में कोई वस्तु चिरस्थायिनी नहीं है, जो जन्मा है अवश्य ही मरेगा, जिसका संयोग है उसका वियोग भी अवश्य ही होगा, विधना का लिखा कोई मेट नहीं सकता, जो बात किसी के रोके रुक नहीं सकती उसके लिये शोक करना वृथा है । देखिए वीर मल्हाररावजी, यह संसार एक ऐसा तैयार सवार है, जो मृत्यु की ओर जा रहा है। काल राह देखता है कि किस घड़ी इस शरीर को नष्ट कर दे । मनुष्य को सदा काल की संगति रहती है । होनहार के गति नहीं जानी जाती । कर्म के अनुसार मनुष्य देश अथवा विदेश में मृत्यु के प्राप्त होते हैं । संचित कर्मो की शेप पूरा होने पर फिर यहाँ एक क्षण भी माँगे नहीं मिलता, पल भर भी नहीं जाने पाता कि कूच करना पडता है । अचानक काल के हरकारे छूटते हैं और इस देह को मृत्युपंथ में ले आते हैं । मृत्यु की मार होने पर कोई सहारा नहीं दे सकता । आगे पीछे सब की यह दशा होती है । मृत्यु काल की ऐसी अच्छी लाठी है जो बलवान की भी खोपड़ी पर बैठती है; बड़े बड़े राजा महाराज और बड़े बड़े बलवान योद्धा भी इससे बच नहीं सकते हैं।

मृत्यु नहीं जानती कि यह क्रूर है, मृत्यु नहीं जानता कि यह पहलवान है, और वह यह भी नहीं जानता कि यह समरांगण में संग्राम करनेवाला शूर पुरुष है। वह नहीं