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पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/४५

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जानती कि यह क्रोधी है और न वह यही समझती है कि यह धनवान है । सर्वगुणसंपन्न पुरुष को भी मृत्यु कोई चीज नहीं समझती । विख्यात पुरुष, श्रीमान पुरुष और महा पराक्रमी पुरुष को भी यह नहीं छोड़ती, अश्वपति, गजपति, नरपति आदि किसी की भी यह परवा नहीं करती । लोक मान्य, राजनीतिज्ञ और वेतनभोक्ता पुरुषों को भी यह नहीं बचने देती । वह कार्य कारण नहीं जानती, वह वर्ण अवर्ण भी नहीं समझती और न कर्मनिष्ट ब्राह्मण पर ही कुछ दया करती है । सर्व प्रकार से सम्पन्न और विद्वान पुरुष का भी वह विचार नहीं करती है और न यह योगाभ्यासी और न संन्यासियों का ही विचार करती है ।

विरचन काल सकल ससारा ।

करन काल सब लोक सहारा ।।

सब सोवत जागत तब सोई ।

काल सम न बली नहीं कोई ।

अर्थात् काल सब प्राणियों को खा जाता है और काल ही सब प्रजा का नाश करता है, सब पदार्थों के लय हो जाने पर काल जागता रहता है ।

"To every man upon this earth Death cometh soou or late."
प्रत्येक प्राणी मात्र को एक न एक दिन अवश्य मरना है।"

इधर फौजी सरदारों में से एक ने अहिल्याबाई के पास यह हृदयविदारक संवाद भेज दिया जिसके श्रवण मात्र से ही बाई बिजली की भांति तड़प गईं और अपने प्राणनाथ के