पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/४६

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मृत,शरीर के निकट आकर नाना प्रकार से विलाप करने लगीं, जिसको सुनकर सारी फौज के अफसर तथा सिपाही दुःखसागर में निमग्न होगए, यहां तक कि वन के पक्षियों की भी आहट नहीं सुनाई देती थी । अंत को मल्हार राव धीरज धर कर अपनी प्यारी पुत्रवधू को समझाने का प्रयत्न करने लगे । जिस पुत्र को बचपन से बहुत सावधानी के साथ लाड़ चाव से पाला पोसा था और यह विचारते थे कि हमारी उत्तर अवस्था में वह साथ देगा परंतु उसका उत्तर संस्कार करने का अवसर स्वयं पिता को ही आ प्राप्त हुआ । मल्हारराव उसका अंतिम संस्कार करने को तयार हुए कि इतने में अहिल्याबाई ने यह संकल्प किया कि मैं भी अपने प्राणनाथ प्राणपति के साथ सती होकर अपना शरीर नष्ट करूंगी, क्योकि संसार में पतिव्रता स्त्री के लिये अपने प्राणपति के स्वर्गवास के बिछोहरूपी दुःख के बराबर कोई दूसरा दुःख नहीं होता है । स्त्री का सारा सुख, सारा सामाग्री और उसके प्राण केवल एकमात्र उसका पती ही है ।

अहिल्याबाई का सती होने का विचार निश्चित है यह खबर सुन सारे कटक में और भी कोलाहल मच गया । राज परिवार के लोगों ने, सरदारों ने और ब्राह्मणों ने बाई को बहुत समझाया बुझाया । परंतु उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा भंग न होने दी । यह देख अंत को दुःखित मल्हारराव बोले "बेटी क्या तु भी मुझ अभागे और बूढे को इस अथाह संसार समुद्र में डुबाकर चली जायगी ? खंडोजी तो मुझे इस बुदापे में धोखा देकर छोड़ ही गया, अब अकेले तेरा मुख-देख उसे भुलाऊँगा