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पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/६६

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अथवा किसी प्रश्न का उत्तर देत समय कभी झूठ मत बोलना और कदाचित् तुम से कोई चूक हो जाय तो उसका कारण बतला कर क्षमा करने की प्रार्थना करना, फिर ऐसी सावधानी से रहना कि वैसा अपराध पुनः न होने पावे । पतिव्रत धारण करने में सावित्री दमयंती और देवी श्रीमता जगज्जननी प्रख्यात सीता जी का पदानुकरण करना । जिस प्रकार की सेवा करने में स्वामी को सुख मिले मरण पर्यंत वैसी ही सेवा शुश्रूषा करने पर सर्वदा उद्यत रहना और यदि सेवा करने के समय कुछ कष्ट बोध हो तो भी उससे मुंह न मोड़ना वरन सहर्ष पतिसेवा में लीन रह कर पति के आनंदित करते रहना । बेटी, देखने में तुम दो हो, अब हृदय से हृदय और मन से मन मिलकर एक हो जाओगे । जिस स्त्री के पास पतिरूपी अमूल्य रत्न नहीं है उसके ऐसी अभागिनी इस संसार में दूसरी कोई नहीं है । और जो स्त्री ऐसे प्राणों के प्राण को व्यर्थ दुखी करती है उसके समान पापिनी इस भूतल पर कोई नहीं है। स्वामी से सदा मधुर में सत्य भाषण करना, कभी क्रोधयुक्त शब्दों का उपयोग भूल कर भी न करना, क्योंकि क्रोध के उत्पन्न करने वाले शब्दों का यदि उपयोग स्त्री अपने स्वामी से करे तो यह सदा के लिये पति के अंतःकरण से पतित हो जाती है और हमेशा कलह होकर, सुख का नाश होता है । इसलिये पुत्री, तुम सर्वदा क्षमा और शांति का अवलंब करते रहना, परस्पर प्रेम करनेवाले दंपति बहुधा विचारशून्य नहीं होते, तो भी कभी कभी इनके प्रेम में विघ्न आ जाता है । इसलिये तुमको चाहिए कि तुम से कोई