दासी ४५ उसी दिन नहीं मरा जिस दिन मेरे इतने वीर साथी कटार से लिपट कर इसी गजनी की गोद में सोने चले गये। फीरोजा | उन वीर आत्माओं का वह शोचनीय अत ! तुम उस अपमान को नहीं समझ सकती हो।
सुतान ने सिल्जूको से हारे हुए तुर्क और हिन्दू दोनों को ही नौकरी से अलग कर दिया। पर तुर्कों ने तो मरने की बात नहीं सोची ?
कुछ भी हो तुर्फ सुल्तान के अपने लोगों में हैं और हिदू बेगाने ही हैं। फीरोजा ! यह अपमान मरने से बढ़ कर है।
और आज किस लिए मरने जा रहे थे? वह सुन कर क्या करोगी १-कह कर बलराज छुरा फक कर एक लम्बी सास ले कर चुप हो रहा । फीरोजा ने उस का कन्धा पकड़ कर हिलाते हुए कहा-
सुनूँगी क्यों नहीं । अपनी हा उसी के लिए ! कौन है वह ! कैसी है ? बलराज गोरी सी है मेरी तरह पतली दुबली न? कानों में कुछ पहनती है ? और गले म
कुछ नहीं फीरोजा मेरी ही तरह वह भी कंगाल है । मैंने उस से कहा था कि लड़ाई पर जाऊँगा और सुल्तान की लूट म मुझे भी चादी सोने की ढेरी मिलेगी जब अमीर हो जाऊँगा तब श्राकर तुमसे ब्याह करूँगा।
तब भी मरने जा रहे थे । खाली ही लौट कर उससे भेंट करने की उसे एक बार देख लेने की तुम्हारी इच्छा न हुई | तुम बड़े पाजी हो । जाओ मरो या जियो मैं तुम से न बोलूँगी।
सचमुच फीरोजा ने मँह फेर लिया । वह जैसे रूठ गई थी। बल राज को उसके इस भोलेपन पर हँसी ना सकी । वह सोचने लगा फीरोजा के हृदय में कितना स्नेह है! कितना उल्लास है ? उसने पूछा-फीरोजा तुम भी तो लड़ाई में पकड़ी हुई गुलामी भुगत रही हो।