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पृष्ठ:आँधी.djvu/७४

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घीसू

नन्दू बाबू की बीन सुनकर वह बाजार से कचौड़ी और दूध लेता घर जाता अपनी कोठरी में गुनगुनाता हुआ सो रहता ।

उसकी पूँजी थी १ )।, वह रेजगी और पैसे की थैली लेकर दशाश्वमेध पर बैठता एक पैसा रुपया बट्टा लिया करता उसे की बचत हो जाती।

गोविंदराम जब बूटी बनाकर उसे बुलाते वह अस्वीकार करता। गोविंदराम में कहते-बड़ा कंजूस है । सोचता है पिलाना पड़ेगा इसी डर से नहीं पीता।

घीसू कहता--नहीं भाई मैं संध्या को केवल एक ही बार पीता हूँ।

गोविंदराम के घाट पर बिदो नहाने आती दस बजे | उसकी उजली धोती में गोराई फूटी पड़ती । कभी रेजगी पैसे लेने के लिए वह घीसू के सामने आकर खड़ी हो जाती उस दिन घीसू को असीम आनंद होता । वह कहती--देखो घिसे पैसे न देना।

वाह बिदो । घिसे पैसे तुम्हारे ही लिए है क्यों ।

तुम तो घीसू ही हो फिर तुम्हारे पैसे क्यों न घिसे होंगे १-कह कर जब वह मुस्करा देती तो घीसू कहता-बिदो | इस दुनिया में मुझसे अधिक कोई न घिसा होगा इसीलिए तो मेरे माता पिता ने घीसू नाम रखा था ?

बिदी की हँसी आंखों में लौट जाती। वह एक दबी हुई सांस लेकर दशाश्वमेध के तरकारी बाजार म चली जाती।

बिन्दो नित्य रुपया नहीं छुड़ाती इसीलिए घीसू को उसकी बातों के सुनने का आनन्द भी किसी किसी दिन न मिलता। तो भी वह एक