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पृष्ठ:आदर्श महिला.djvu/१०१

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[दूसरा
आदर्श महिला

भीतरी सुन्दरता से यह पृथ्वी पवित्र होगी। मैं दिव्य दृष्टि से देखता हूँ कि आपकी यह कन्या पवित्रता की पुतली है। उसके पास अशुभ नहीं आ सकेगा। मद्रनरेश! जैसे सूर्य की किरण के पास अन्धकार नहीं आ सकता वैसेही इस अलौकिक सतीत्व की किरणों से शोभित देवी के पास कोई संसारी-कालिख नहीं आवेगी। और, यह पवित्रता-रूपी गङ्गा की धारा पर्वत के समान भारी बाधा को न मानकर शान्त, उदार और विशाल महासागर में ही मिलेगी।

यह कहकर देवर्षि ने सावित्री का प्रेम-पूर्वक सम्बोधन कर कहा---बेटी! मैं आशीर्वाद देता हूँ कि तुम्हारे सतीत्व की शोभा बनी रहे और तुम भविष्य में स्त्रियों के लिए सुन्दर आदर्शरूप बनी रहो। वत्से! सनातन हिन्दू-धर्म के इतिहास में तुम्हारी कीर्तियुक्त कथा सोने के अक्षरों में लिखी रहेगी।

महर्षि प्रसन्न होकर वीणा बजाते हुए ब्रह्मलोक को चले गये। राजा अश्वपति ने लड़की को आदर से पास बिठाया। सभासद लोग सावित्री की एकनिष्ठा पर धन्य-धन्य करने लगे। राजा अश्वपति ने समय अधिक बीता जानकर दरबार उठने की आज्ञा दी। उस अपूर्व तेजवाली लड़की के साथ वे राज-महल को चले गये।

[ ६ ]

हारानी मालवी देवी आज दरबार उठने में इतनी देरी देखकर सोच में पड़ गई थीं। उन्होंने अचानक राजा और प्राण से प्यारी बेटी को सामने देखकर पूछा---महाराज! आज दरबार में इतनी देर क्यों हुई?

राजा---रानी! आज देवर्षि नारद दरबार में पधारे थे। उनसे सावित्री के ब्याह के बारे में बातचीत होती थी। इसी से इतनी देर हो गई।