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[ तीसरा
आदर्श महिला

राजकुमारी! मैं देवताओं का दूत हूँ और आपको देवताओं की इच्छा सुनाने के लिए यहाँ आया हूँ।

दमयन्ती---बताइए, देवताओं ने मुझे क्या आज्ञा की है?

नल---सुन्दरी! आपके स्वयंवर के लिए इन्द्र, अग्नि, वरुण, और धर्मराज यम आकर नगर के बाहर एक जगह ठहर गये हैं। वे आपके रूप और गुणों पर एकदम लट्टू हैं। उन लोगों की इच्छा है कि आप उनमें से किसी एक को वर लीजिए।

दमयन्ती--हे भाग्यवान्! आप उन लोगों के चरणों में मेरा प्रणाम निवेदन करके कहिएगा कि मैं उन लोगों की इस आज्ञा का पालन नहीं कर सकूँगी। क्योंकि मैं अपना हृदय एक और मनुष्य को सौंप चुकी हूँ। देवता लोग ही धर्म की रक्षा करते हैं। उन लोगों से, नम्रता-सहित मेरी प्रार्थना है कि वे मुझ पर ऐसी कृपा करें जिससे मैं स्वयंवर-सभा में अपने चाहे हुए वर को पहचान सकूँ और उनके गले में माला पहना सकूँ।

नल---चन्द्र के से मुखड़ेवाली राजकुमारी! आप यह क्या कर रही हैं? देवताओं के राजा इन्द्र, जगत् को पवित्र करनेवाले अग्नि-देवता, जल के स्वामी वरुण और मृत्यु के पति धर्म आपका पाणिग्रहण (विवाह) करने के लिए सभा में हाज़िर हैं। तीनों लोकों में पूज्य इन सब श्रेष्ठ देवताओं को छोड़कर क्या आप साधारण मनुष्य के गले में जयमाल डालेंगी?

दमयन्ती--महाशय! यह आप क्या कह रहे हैं? इस जगत् में जिसके लायक़ जो चीज़ है, उसको उसी पर सन्तुष्ट रहना चाहिए। मैं आदमी हूँ। मैं नर-देवता को ही पति बनाकर धन्य हूँगी। मैं देवी नहीं बनना चाहती।