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[ तीसरा
आदर्श महिला

समय भी सहारा मिल सकता है। आपके बग़ल में, केवल एक आप ही का भरोसा रखनेवाली स्त्री का हृदय आपकी सारी विप- दाओं से भिड़ जाने के लिए तैयार है।

राजा ने कहा---दमयन्ती! मैं जानता हूँ कि स्त्री ही, दिशा भूले हुए, अभागे स्वामी की दुर्भाग्यरूपी रात के घने अँधेरे में मङ्गलकिरण बरसानेवाली अचल तारा है। सती स्त्री ही विपद के समुद्र में एकमात्र आसरे की नौका है। मेरे सैकड़ों जन्मों की तपस्या का इनाम दमयन्ती! अभागे को छोड़ मत देना। प्यारी! भाग्य के फेर में पड़कर मैं कुछ दिन देश-देश में घूमकर देखूँगा कि मेरा भाग्य पलटता है या नहीं। इसी लिए मेरी बहुत-बहुत प्रार्थना है कि तुम कुछ दिन नैहर में जाकर रहो।

दमयन्ती का चित्त व्याकुल हो उठा। उसने रोकर कहा---क्यों महाराज! दासी ने इन चरणों में ऐसा क्या अपराध किया है कि आप इसको छोड़ना चाहते हैं? आप मुझे अपना साथ छोड़कर, नैहर जाने को न कहें। आपके साथ रहकर ही मैं दुःख को भूलूँगी। वन में घूमते-घूमते जब आप थक जायँगे तब मैं पत्ते से हवा करके आपकी थकावट को दूर करूँगी। हे नाथ! साध्वी स्त्री के लिए पति के वियोग से बढ़कर कोई दूसरी सज़ा नहीं है। मैं छाती रोपकर वज्र की चोट सह सकती हूँ, मैं बिना मुँह बिचकाये चुपचाप हलाहल विष भी पी सकती हूँ; किन्तु आपके पवित्र संग को त्यागकर किसी तरह नहीं जी सकती। हे नाथ! दया करके मुझे अपने पवित्र चरणों से दूर न कीजिए।

नल ने कहा---अच्छा दमयन्ती! तुम मेरे साथ चलो। मुझ अभागे के जीवन में, उजेले की महीन किरण की तरह, मार्ग भूले हुए बटोही के लिए ध्रुव तारे की तरह, तुम सदा मेरे साथ रहना।