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आख्यान ]
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दमयन्ती

हाल बता दे। तेरी हालत देखने से तो यही जान पड़ता है कि तू बहुत दुःख में है। मुझसे जहाँ तक होगा वहाँ तक, मैं तेरे दुःख को दूर करने का उपाय करूँगी। सिर में सेंदुर देखने से मालूम होता है कि तू, सुहागिन है। बेटी! तेरी ऐसी दुर्दशा क्यों है?

दमयन्ती ने हृदय के शोक को दबाकर कहा---"मैया! मैं बड़ी ग़रीबिनी हूँ। मेरे स्वामी, दिनों के फेर से, घर-बार छोड़कर वन में रहते थे। मैं उनको, बुरी हालत के दुःख से, सदा व्याकुल देखती थी और मेरा कोई कष्ट देखकर उनका भी कलेजा फटने लगता था। बीच-बीच में वे मुझसे इस तरह की बात भी कह देते थे कि 'मुझे भाग्य के साथ लड़ाई करके अपनी हालत बदलनी होगी।' मैं रोती तो वे बड़े प्रेम से मेरी आँखों के आँसू पोंछ देते। मा! आज चार दिन हुए, वे अँधेरी रात में मुझको घने वन में छोड़कर न जाने कहाँ चले गये हैं। मैं चार दिन से वन-वन भटककर उनको ढूँढ़ती फिरी किन्तु कहीं उनका दर्शन नहीं हुआ।" धीरे-धीरे उसने उन सब विपत्तियों का कच्चा हाल सुना दिया जो उस पर इन चारों दिनों में बीती थीं। महल की स्त्रियाँ उसके पातिव्रत्य का परिचय पाकर हक्का-बक्का हो गई।

"बेटी! तुम मेरी लड़की की तरह मेरे यहाँ रही। यहाँ तुम्हें किसी तरह का डर नहीं है। मैं तुम्हारे स्वामी को ढुँढ़वाऊँगी।" कहकर राजमाता ने अपनी लड़की से कहा---बेटी सुनन्दा! यह तुम्हारी उमर की है, इसलिए तुम इसको अपनी सखी समझना।

दमयन्ती को सुनन्दा अपने कमरे में लिवा गई। दमयन्ती राज-महल में राजमाता का प्रेम और सुनन्दा का सखित्व पाकर निडर ही रहने लगी।